धर्म जीवन जीने की कला | Dharma Jivan Jine Ki Kala
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सत्यनारायण गोयन्का - Satyanarayan Goyanka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ धर्म : जीवन जीने की कला
धर्म है। यही धर्म की शुद्धता है। यही शुद्ध धर्म का जीवन है, जिसकी
आवश्यकता सावंजनीन है।
धमं सावंजनीन है, इसलिए शुद्ध धमं का सम्प्रदाय से कोई सम्बन्ध नहीं,
कोई लेन-देन नहीं । शुद्ध धमं के पथ का पथिक जब धम्मं पालन करता है तब
किसी सम्प्रदाय-विशेष के थोथे निष्प्राण रीति-रिवाज पूरे करने के लिए नहीं
किसी ग्रन्थ-विरोष के विधि-विधान का अनुष्ठान पूराकरनेके लिए नहीं
मिथ्या अंधविश्वास- जन्य रूढि परम्परा का रिकार होकर किसी लकोरका
फकीर बनने के लिए नहीं, बल्कि शुद्ध धमं का अभ्यासी अपने जीवन को
सुखी और स्वस्थ बनाने के लिएही धमं का पालन करता है । धामिक
जीवन जीने के लिए धर्म को भलीभांति समझकर, उसे आत्म-कल्याण ओर
परकल्याण का कारण मानकर ही उसका पालन करता है। बिना समझे हुए
केवल अंध-विश्वास के कारण अथवा किसी अज्ञात शक्ति को संतुष्ट प्रसन्न
करने के लिए अथवा उसके भय से आशंकित-आतंकित होकर धर्म का पालन
नहीं करता । धर्म का पालन दूषणों का दमन करने के लिए ही नहीं, बल्कि
प्रज्ञापूवक उनका पूर्ण शमन और रेचन करने के लिए करता है। धर्म का
पालन केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि बहुजन के हित-सुख, मंगल-कल्याण
और बहुजन की स्वस्ति-मुक्ति के लिए करता है ।
धर्म का पालन यही समझकर करना चाहिए कि वह सावंजनीन है,
सर्वंजनहितका री है; किसी सम्प्रदाय विशेष, वर्ग विशेष या जाति विशेष से बंधा
हुआ नहीं है। यदि ऐसा हो तो उसकी शुद्धता नष्ट हो जाती है। धर्म तभी
तक शुद्ध है, जब तक सावंजनीन, भार्वदेशिक, सावंकालिक है । सबके लिए एक
जैसा कल्याणकारी, मंगलकारी, हित-सुखकारी है। सबके लिए सरलतापूर्वक
बिना हिचक के ग्रहण कर सकने योग्य है |
शुद्ध वायुमण्डल में रहना, शुद्ध-स्वच्छ हवा का सेवन करना, शरीर
स्वच्छ रखना, साफ-सुथरे कपड़े पहनना, शुद्ध स्वच्छ सात्विक भोजन, मुझे
इसलिए करना चाहिए कि यह् मेरे लिए हितकर है। परन्तु यह केवल मेरे
लिए ही नहीं, किसी एक जातिविशेष, লবানিহী या सम्प्रदायविशेष के लिए
ही नहीं, बल्कि सबके लिए समान रूप से हितकर है। केवल में ही नहीं,
कोई भी व्यक्ति यदि अशुद्ध, अस्वस्थ वातावरण में रहता है, गन्दी विषैली
User Reviews
No Reviews | Add Yours...