अँजुरी भर आखर | Ajunri Bhar Aakhar

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Ajunri Bhar Aakhar by बृजमोहन श्रीवास्तव -Brijmohan ShriVastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| जुग के घुकार ! मिटल गुलामी के गहन अन्हरिया उगल अजादी के गह-गह अंजोरियि असन सुधर सुअवस्र জলি खोवे आपने भाग संवार रे किसनवों, जुगवा के इहे बा पुकार रे किसनवाँ। পর নং মর इहे ह्वे गंगा-जमुना, इहे ह बधरिया खेती परधान देस, खेतिए पगरिया पुर्खन के नोव पर बहा ना लग पावे आज मिलिजुलि के बिचार रे किसनवो, | जुगवा के इहे बा 3 रे किसनवाँ। गैन चै सब सुख - संपति लोटे भारत के पईयाँ एही से कहात रहे सोना के चिरं दुनिया के ज्ञान-बोध इहे से मिलल हउवे कहे इतिहास ललकार रे किसनरवोः जुगवा के इहे बा पुकार रे किसन्वँ। नमॐ




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