आस्था के स्वर | Aastha Ke Swar

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Aastha Ke Swar by श्याम विद्यार्थी - Shyam Vidyarthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध ৮1 1. ॥ १ १ जे শ্রী তত ৮ বল ज न प स्थाई ( এ नालन्दा ओः तक्षशिला के इन दृद पाषाणो मे, छिपी पड़ी ই ज्ञान सपदा धूल धूसरित अवशेषो मे । बड़े बडे ज्ञानी रहते थे नतमस्तक इनके मान में, आँसू की दो बूँदें ही अब तत्पर स्वागत गान में । उस अतीत में स्वर्ण विहग सा देश कहा जाता मेरा, उसका वह वैभव वह गौरच क्यों नहीं रहा होकर मेरा ? जग ऑगन में मधुर मधुर कलरव करता था खग मेरा | हाय कौन-सा क्रूर श्येन ले गया छीन पछी मेरा । उसके तेजस्वी स्वरूप को करता प्रणाम मन मेरा । उसके मनहर सुन्दर आनन हित चकोर मन मेरा | कटां गया बल रूप तेजं चह यही खोजता मन मेरा, लौटा दो फिर कालदेव तुम यही चाहता मन मेरा । ऋ के स्वर / ४




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