आस्था के स्वर | Aastha Ke Swar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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नालन्दा ओः तक्षशिला के
इन दृद पाषाणो मे,
छिपी पड़ी ই ज्ञान सपदा
धूल धूसरित अवशेषो मे ।
बड़े बडे ज्ञानी रहते थे
नतमस्तक इनके मान में,
आँसू की दो बूँदें ही अब
तत्पर स्वागत गान में ।
उस अतीत में स्वर्ण विहग सा
देश कहा जाता मेरा,
उसका वह वैभव वह गौरच
क्यों नहीं रहा होकर मेरा ?
जग ऑगन में मधुर मधुर
कलरव करता था खग मेरा |
हाय कौन-सा क्रूर श्येन
ले गया छीन पछी मेरा ।
उसके तेजस्वी स्वरूप को
करता प्रणाम मन मेरा ।
उसके मनहर सुन्दर आनन
हित चकोर मन मेरा |
कटां गया बल रूप तेजं चह
यही खोजता मन मेरा,
लौटा दो फिर कालदेव तुम
यही चाहता मन मेरा ।
ऋ
के स्वर / ४
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