भक्ति रस फुटकर प्रसंग | Bhakti Ras Phutakar Prasang
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
352
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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१४ भक्ति रस फुटकर प्रसग
कीरति घ॒खित मई ज॒निहारि ! कौतिक आईं सव पुर् नारि ॥ १४६
राधा खेल अलौक्षिकि महा । लगे लोक লব कहिये कहा ॥
नये-नये खेल करें जु उदोत। लखिआनन्दसबनिमन होत॥१४०
वामर बीत्यौ रजनी भई । करतत बोलि कुँवरि ठिग लई ॥
तो मन बहुत खेल में रहे। मोसों कबहुँ न बातें कटै ॥१५१
तात संग अब व्यारू कीजें। मिश्रित सिता धापि पय पीजे ॥
भाँन लई पुचकारि जु अंक । मनहुकनक गिरि उदित मयंक ॥१४२
নহি জিলানল জনন आपु । राधा मुख मृटु घनत लाप ॥
बाबा मेरी प्रात न आयो। पहिलें तुम क्यों मोहि जिमायो ॥ १४३
राधा की सुनि के हित बानी । भये मन मुदित राह पुनि रानी ॥
सुनि बेटी वह तोमों लरे। तू क्यों पक्ष बीर की करें ৫8৪
सरं तञ मन चोद न उदास । मोहि वीर बिनु रुचे नग्रास ॥ |
सुनि अतिलडि के मीठे बेंना । तात सजल हो आये नेंना ॥१४४ |
खेलते श्री दामा आयो । कर पद ध्वा ताहि बेठायो ॥ |
भीरं बिनि मिलि भोजन करं । तात मात लसिश्रानन्द भरं ॥१५६ |
दोहा-पय अधवरट मिश्री एरी, दरहुनि धापि कियो पान ॥ |
तन मन अति रीं सुखित् हं › जेवत शरौ वृकृभान ॥१५७॥
मेया पलंग विच्ाह ॐ, मोटि. देहु पढाई)
यावा हूँ. अब जेंह चुके, तू जिनि गहरु लगाइ ॥१४८॥ |
है # चौपाई % |
रावल राइ आच्वन लियो । बीरी खाई पैन पुनि कियो ॥
कीरति जेंयों सवनि जिमाइ। कुंवरिहिं पलिका दियो बिछाइ ॥ १५६ ;
मैया मोसों कहि जु कहानी | अति रोचक मेरे मन मानी ॥ ॥
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पोरि पे आई। मधुर मधुर मोसों बतराई ॥१६०
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