भक्ति रस फुटकर प्रसंग | Bhakti Ras Phutakar Prasang

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Bhakti Ras Phutakar Prasang by विश्वेश्वर शरण - Vishweshvar Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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__ -- --- -~----- “~~ १४ भक्ति रस फुटकर प्रसग कीरति घ॒खित मई ज॒निहारि ! कौतिक आईं सव पुर्‌ नारि ॥ १४६ राधा खेल अलौक्षिकि महा । लगे लोक লব कहिये कहा ॥ नये-नये खेल करें जु उदोत। लखिआनन्दसबनिमन होत॥१४० वामर बीत्यौ रजनी भई । करतत बोलि कुँवरि ठिग लई ॥ तो मन बहुत खेल में रहे। मोसों कबहुँ न बातें कटै ॥१५१ तात संग अब व्यारू कीजें। मिश्रित सिता धापि पय पीजे ॥ भाँन लई पुचकारि जु अंक । मनहुकनक गिरि उदित मयंक ॥१४२ নহি জিলানল জনন आपु । राधा मुख मृटु घनत लाप ॥ बाबा मेरी प्रात न आयो। पहिलें तुम क्यों मोहि जिमायो ॥ १४३ राधा की सुनि के हित बानी । भये मन मुदित राह पुनि रानी ॥ सुनि बेटी वह तोमों लरे। तू क्यों पक्ष बीर की करें ৫8৪ सरं तञ मन चोद न उदास । मोहि वीर बिनु रुचे नग्रास ॥ | सुनि अतिलडि के मीठे बेंना । तात सजल हो आये नेंना ॥१४४ | खेलते श्री दामा आयो । कर पद ध्वा ताहि बेठायो ॥ | भीरं बिनि मिलि भोजन करं । तात मात लसिश्रानन्द भरं ॥१५६ | दोहा-पय अधवरट मिश्री एरी, दरहुनि धापि कियो पान ॥ | तन मन अति रीं सुखित्‌ हं › जेवत शरौ वृकृभान ॥१५७॥ मेया पलंग विच्ाह ॐ, मोटि. देहु पढाई) यावा हूँ. अब जेंह चुके, तू जिनि गहरु लगाइ ॥१४८॥ | है # चौपाई % | रावल राइ आच्वन लियो । बीरी खाई पैन पुनि कियो ॥ कीरति जेंयों सवनि जिमाइ। कुंवरिहिं पलिका दियो बिछाइ ॥ १५६ ; मैया मोसों कहि जु कहानी | अति रोचक मेरे मन मानी ॥ ॥ নুরী কক | তে টি 0 ১558 पोरि पे आई। मधुर मधुर मोसों बतराई ॥१६० है.




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