हिंदी भक्ति काव्य और हरिहर | Hindii Bhakti Kaavya Aur Harihar

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Hindii Bhakti Kaavya Aur Harihar by क्षेत्रपाल गंगवार - Kshetrapal Gangwar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क | ९ | ५ कृष्ण-काव्य और हरिहर हिन्‍्दी-साहित्य के इतिहास में कृष्ण-काव्य का अक्षुण्ण स्थान है। हिन्द परम्परा में मान्य दशावतारों में राम के बाद कृष्ण ही आते है। यद्यपि कृष्ण का उल्लेख बैदिक साहित्य से मिलता है, प्रथापि उनमें देवत्व का आरोपण महाभारत से ही उपलब्ध होता! है | गीता के कृष्ण विष्णु के पूर्ण अवतार परतवरह्म है परन्तु कृष्ण के व्यक्तित्व का विकाश्त हरिवशपुराण में हुआ है, जहाँ से उनके साथ गांवर्धव-यूणा, गो पालन आदि की विविध लोलाएँ सलम्न हो जाती है। वायू, विष्णु, अग्नि, पदम आदि पुराणों में कृष्ण-चरित का वर्णन है, परन्तु हिन्दी के कवियों को आकर्षित करने वाला कृष्ण का स्वरूप भागवतपुराण में पाया जाता हैं। यह मध्यकाल का महत्वपूर्ण प्रन्ध है, जिसमें भगव।नु कृष्ण के अन्य अवतारों के अतिरिक्त उनकी लोकिकन्शलौकिक लीलाओो का वहा है । परन्तु यह स्मरणीय है कि भागवतकार की रुचि कृष्ण के बाल-जीवन से ही अधिक है और उत्तर-जीवन का उसने संकेत जैसा कर दिया है! इसमें गोपियों का वर्णन तो है, परन्तु राधा का नहीं । ष्ण के साथ एकान्त मे विचरण करने वाली किसी गोपी के विषय में जानकर अच्य गोपियाँ कहदी हैं कि उसने अदृश्य कृष्ण की आराधना की होगी तभी तो बह उनके साथ है | ऐसा समझा जाता है कि इस आरा- घना शैब्द से ही राधा की व्युत्पत्ति हुई । राधा का उल्लेख सर्वप्रथम गोपालतापती उपनिषद्‌ मे हमा है ¦ हरिवश व्रणा भागवदपुराण की विविध कृष्ण-लीलाएं तथा कृष्ण- चरित और “राधा! ही आगे के कृष्ण-काव्य को प्रमुख आधारशूमि प्रदान करते हैं। अन्य पुराणों के समान इन दोनों पुराणों में भी शिव और লি ্তা के पारस्परिक सम्बन्ध के विविध स्तर मिलते है । कृष्ण द्वारा शिव-पूजन अथवा शिव द्वारा विष्णु-मक्ति, रुद-गीत से विष्णु की प्राप्ति, शिव या विष्णु में किसी वेः भी पूजन से ससार की समस्त वस्तुओं की सुलभता, शिव तथा विष्णु में एकात्म-स्थापन, हरिहर-स्तवन आदि कुछ ऐसी ही विशिष्ट स्थितियाँ हैं ।




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