धर्म मनोविज्ञान और श्री रामकृष्ण | Dharma Manovigyan Aur Shri Ramkrishna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) श्रद्ेय गुरु डॉ० श्रवधविहारी लाल कपूर (भूतपूर्व प्रधानाचार्य राजकीय महाविद्यालय, रामपुर) जिनका जं:वन धमेमय हैः स मेरे जीवन का पथ श्रालोकित हुआ है। उनके प्रति सै किन शब्दों में आभार प्रकट करूँ, समझ में नहीं श्राता। | मह्महोपाध्याय छौ गोपीनाथ कविराज, सतः माह्त्य के मर्मज्ञ पं परशुराम चतुर्वेदी तथा डॉ० एन० के० देवराज, (भ्रध्यक्ष- दर्शन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी ) इन विद्वानों से अनेक युकाव प्राष्त हुए हैं। अनएवं इन महानूभावों के प्रति हार्दिक इृतज्ञता प्रक८ हुए बिना केसे रह सकती ह? श्रादरणीय गुरुदेव श्री विश्वम्भर नाथ शर्मा, जं। सच्चे प्रथौं में दार्शनिक है और जिन्होंने ই আল में एक भतिद है, तथा उनका एकं स्वप्न जिसको मैं साकार कर सका हूँ, के प्रति भी मैं हार्दिक रूप से कृतज्ञ हैँ। , श्रद्धेय गुरु डॉ० कृष्णदेव उपाध्याय एवं भाई डॉ० विभ मिश्च (हिन्दी विभाग, काशी नरेण राजकीय महाविद्यालय, ज्ञानपुर, वाराणसी) का मै चिर झाभारी हँ। इन विद्वानों ने श्रना श्रभूल्य समय देकर ग्रन्थ की भाषा का परिष्करण एवं परिमार्जन किया है। पुस्तक-प्रकाशन' के लिए सुहृद श्री' राजपति पाण्डेय एम'० ए० (इतिहास- हिन्दी) बी० एड० और अनुज श्री' प्रभुनाथ मिश्र एम० काम, का मैं भ्रत्यधिक प्रामारी ह । इनसे पुस्तक लिखने, प्रकाशित कराने की ही' प्रेरणा नहीं, जीवन जीने की कला और प्रन्तदू ष्टि भी मिली है। दोनों ही व्यक्ति धार्मिक अनुभवों के लोलुप है, साधक है, इसलिए भ्रनुकरणीय हैं। श्री सूर्यप्रकाश सूरज तथा थ्री' श्रशोक कुमार जी' से जो सहायता मुझे प्राष्त हुईं हैं, उसे मैं भूल नहीं सकता। श्री प्रमोद शकर दीक्षित एम ० ए० (प्रकाशक--श्री जगबन्धु प्रकाश्षत, ज्ञानपुर वाराणसी) भी हार्दिक धन्यवाद के पात्र हैं। ग्न्त मे श्री कमलाकान्त पाठक का मैं बहुत-बहुत आभारी हूं, जिन्होंने प्रनेक कठिनाइयों के होते हुए भी यथाशीभध्र ही इस पुस्तक का प्रकाशन-कार्य किया। १२, फरवरी; १६७२ हृदय नारायण मिश्र शी रामकृष्ण भवन, জী $लञानपुर (वाराणसी)




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