हिंदी श्रीभाष्य - भाग 6 | Hindii Shriibhaashhya Vol.6
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ २ )
कह चुका हूँ कि शोधक वाक्य ( ब्रह्म के स्वरूप को स्पष्ट रूप
से निह्पश करने वाते वाक्य ) भी ब्रह्म को विशेषण विशिष्ट
रू से ही बताज्ञाते हैं ।
|| तत्वमसि वाक्य के अथं का विचार ॥
म्०-सस्वमस्पादिवाक्येषु सासानाधिकरण्यं न निविशेषव-
स्त्नेक्यपर् व् , तत्त्वम् पदयोः सविशेषं बह्यभिधाथि-
त्वात् । तत्पद हि सवज्ञं सत्यसंकल्पं जगत्कारणं
दह परामृशति, तदेक्चत् बहस्याम् ' इत्यादिषु तस्येव
प्रकृतत्वात् तठत्समानाधिव्रण त्वस्पदञ्च श्रचिद
दिशिष्ठजीबशरीरक ब्रह्म प्रतिपादयति । प्रकारद्या
वस्थितैकबस्तु परत्वात- सामानाधिकरण्यस्य । प्रकार-
हयपरित्यागे प्रवत्तिनिमित्तमेदासम्भवेन सामानाधिक-
रण्यमेव परित्यक्तं स्यात दयोः पदयोलेक्षणा স্ব ।
' सोऽयं देवदत्त इत्यत्रापि न लक्षणा, भूतवतमान
कालसंबन्धितयक्य प्रतीत्यविरोधात । देशभेदविरोधश्च
कालभेदादेव परिहूतः । 'तदंक्षतं बहुस्यास. इत्थुपक्रम-
विरोधश्च । एकनि्ञानेन सव विन्नानप्रतिकज्ञाने च न
घटते । ज्ञानस्वरूपस्य निरश्तनिखिलददस्य सर्नज्ञस्य
सर्गकल्यारागुरयात्मकस्याज्ञानं तत्कायनिन्दापुरुषार्था-
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