हिन्दुस्तानी अकादमी की तिमाही पत्रिका - भाग 5 | Hindusthani Acedamy Ki Timahi Patrika - Bhag-5

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन भारत में वास्तुदिया मौर मानसार शिल्पशास्त्र ९ आप ने तीन भिनर भिन्न पोथियों मे प्रकाशित विया है। इस के अतिरिक्त एवं जिलल्‍्द में आप ने भारतीय वास्तुपछा' पर विचार त्रिया है भोर अनेक शोधपूर्ण प्रमाणो और तकों से 'मानसार' तथा अन्य शिल्प-शास्त्रो पर प्रगाश डाला है। ये सारे प्रयत्त आप ने केवल 'मानसार' के अध्ययन में सुविधा उपस्थित बरने के हेतु विए है । 'मानसार' के भस्तुत सस्करण को इन यी सहायता से अध्ययन यरे पर, निपट अविष्य से प्राचीन भारत की सस्वृति पर महत्वपुणं प्रकाश पठने की आशा वीजा सकती है । मानसारः म बुलू ७० अध्याय है। आरभ में ग्रधवार भ्रह्मा भी बदना वरता है और ग्रथ के विषय में वहता हैँ कि मानसार पि ने रिव, ब्रह्मा, भीर विष्णु तपा दद्र, बृहस्पति, नारद और अन्य मुनियो द्वारा वहे हुए बास्तुशास्त्र को सबिस्तर वर्णन करने के लिए यह ग्रथ रचा हूँ। 'मानसार' में वस्तुसूची का क्रम इस प्रकार है। प्रथम-मानोपक्रण-विधान (नाप-परिमाण), शिल्पी बे गुण धर्म, पश्चात्‌, वास्तुमेद, भू-परीक्षा, भूमि-सप्रह (स्थान-निर्णय ), शबुस्पापन (दिशा- निर्णय और दागबेल लगाना), पदविन्यास (स्थान निश्चय फरना) भूमिन्यूजा, गाँव वसाना, नगर-निर्माण, भूमिलव विधान (ऊंचाई निश्चय वरना), गमन्यासविधान (तीव रखना}, उपपौटविधान (कुसी बनाना}, अधिष्ठान-विधान (स्तम की आधार- रचना), प्रादमान (स्तम का माप), पस्तर-विपान (पराटन-करिया), स्भिम्म (जोटाई विदोपत्त लकड़ी), विमान-विधान (पक्वे मकानो के भेद) ) इसके वादएवरसे श्र तत्के कै मकानो कौ माप, रचना विधि आदि का सविस्तर वणेन ह फिर प्राकार, सभा- रचना, देवाऊयो के बनाने थी विधि, गोपुर-विधान ( फाटव-रघना ) भडप-विधान, शाला (बड़ा कमरा), बडी जगह में मदान के भिन्न मागो का स्थान निश्चय करना, गृह- प्रवेश-विधि, द्वारस्थान निश्चय, दरवाज़ो की नाप, राजा के महरू बी रचनाविधि, रथ, शयन (पर्यक), सिंहासन, तोरण, मध्यरग (नाट्यझाला) ,कल्पवृक्ष (बेल সুই) আহি বলা की विधि, नाप आदि दी है। अत में मुकुट, किरीट, आभूषण, मूर्ति-रचना, लिय (मूति)- रचना, पीठ, शक्तियों (देवियो) की मूर्ति, उन के वाहन, उन की माप आदि दी है और उन के अगो की दोप-परीक्षा, उन की मोम की मूर्ति बनाना, उन की आँखें खोलना जादि वर्णित है। प्रसगवश “मानसार' में राजाओ और भूपतियो के ऊक्षण और उन के र्‌ विपय-पुचौ




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