भारत की आर्थिक प्रगति | Bharat Ki Aarthik Pragati

Bharat Ki Aarthik Pragati by दुर्गा दयाल निगम - Durga Dayal Nigam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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লু मार द श्रा्थिक प्रयति पिद रहा है | देश के समी प्रमुख उद्योगों के लिए; क्‍लदा माल इन्हीं मैदान से ही प्राप्त होता है। इन्हीं मैदानों में ही मारव के प्रदुख उद्योग केद्धित हैं. और विभिन्न प्रकार के यावायात के साधनों से मस्पूर है। इन्हीं नेदानों की आर्थिक सम्पजता के प्लखरूप यहाँ के घन एवं दैमद से आकर्षित हो कर विदेशियों ने श्स देश पर भार षार श्राक्रमस॒ कथे जिखका परमाव हमारे राष्ट्र के आथिक विकास पर पडवा रहा | समस्व विश्व को चकित कर देने वाले कवि, सठ, विद्वान एव दार्शनिक इन मैदानों छो दी देन हैँ। वात्वव में मैदान ही क़िडी भी राष्ट्रक आर्थिक; तामाजिक एव सास्कविक विकास क केन्द्र हैं । पर्वंत्त (क1००7७श॥5५) किसी मी राष्ट्र वी आर्थिक समन्नता में वहाँ के पहाड़ों का भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहता है । पहाड़ी देशों ऊे रहने वाले प्राय निर्घन होते हैं। पहाड़ी भूमि होने क कारण इषि एवं आउुनिक उद्योग धन्धों का विक्रास सम्मव नहीं होठा। आ्रावागमन के साधनों का विकास भी नहीं हो पावा। आवागमन के साधनों के अमाव में सम्यवा में भी पहाड़ी लोगों का पाछे रहना स्वाभाविक ही है स्पॉक उनका सम्पर्या सम्य उगव खे महीं रह पराता } {त्वेक राष्ट्र मे मैदान के रहने वालो के लिए पूर्वव एक श्रूल्य निषि है । प्राय -खमी नदिवो कं भव पवत ही ह । इन्हीं नदियों पर क्सी भी राष्ट्र वी आर्थिक उमनठा निर्मर दे । पर्व॑त खनिज एव वनो कै रूप में भी कसी भी राष्ट्र के औद्योगिक मिसि की नुझय आधार-शिला हैं । मारवप में तो पहाड़ों का आर्थिक विज्रास में और मी महत्वपूर्ण स्पान है क्योकि मानघप्र को वर्ष हिमालय की उचय परव॑तमालाओं के कारण ही होती है| यदि हिमालय पदव न होवा तो कदाडित्‌ खारा मारत ही मदसूमे होता | भारतवर्ष उच्चर में लगमग १५०० मील लम्बी तथा २०० मील चौड़ी हिमाच्छादित परत मालाओं छठे घिरा हुआ है। मच्य मास्त में विन्ध्याचल, सवपुड़ा वथा अणावली वी पहाड़ियाँ पाई जाता हैं। दक्षिणी मारत ৯ অন্তরা मैदान पूर्वी और परिचमी घाट की पर्वतमालाओओं से पघरे हें । उचरी दुर्यध पर्वतमालाएँ सदैव मार को विदेशीव शत्रुओं से स्का प्रदान क्रवो रही हें । यही कारण है कि हिमालय को भारत का प्रहरी कहा गया है। विदेशी आक्रमयों ते रद्चा प्रदान करके हिमालव ने रतव सन्वत्‌ एव सल्कृपि जी सदा कौ है । देश में शावि एव चुरा प्रदान क्रक हिमालय ने हमार देशवाच्यों को अपना मौविक एवं आध्यात्लिक विदाल के लिए स्वरसं अवर प्रदान क्या है] बही नी




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