भारतीय लोक प्रशासन | Bharatiya Lok Prashasan

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Bharatiya Lok Prashasan by शालिनी वाधवा - Shalini Wadhwa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 भारतीय लोर प्रशासन से कर रही हैं। (स) भारतीय सेवाओं के भारतीयकरण का प्रश्न प्रशासनिक प्रश्न की अपेक्षा राजनीतिक अधिक था। अप्रेज यह घाइते थे कि भारतीय सेयाओं में जो प्रतिभाशाली अप्रेज युवक आयें, वे स्वामिभक्त हों और उन्हें सुरक्षा की गारटी दी जाये। इनके लिए जो सेवा वनी वषट कवेमेन्टेड सिविल पर्वि् कडलाई। अप्रेजों के अतिरिक्त जो भारतीय पोर्चगीन, यूरेशियन्स तथा पारसी पुवक कपनी प्रशासन में आना चाहते थे उमके लिए जो सेवा বলী, उसे अनकवेनेन्टेड सिविल सर्विस कह्म जाता है। इन दोनों प्रर की भिविल सेवाओं के वीव अग्ने नै एक भा भेद रवा ओर अनक्ेनेन्ेड अधिकारियों कौ केवल सहायक या प्रान्तीय स्तर पर कार्यं कटने वाने कनिष्ठ सेवक मात्र माना। लाई कार्नवालिष भौर विलियम वैन्टिक इस मीति के प्रणेता थे। क्रितु समय के साथ-साथ जैसे-जैसे अनकवेनेटेड सेवा बदली गई, उसके सदस्यों में रोप और आक्रोश उत्पम्न हुआ। इसके मुख्य रूप से दो कारण धे-(1) भारत सरकार अतकपेनेटेड सेवाओं में उप्ती प्रकार वा पेद्रानेन मिदधात चलाने लगी जैसाकि कपनी शासन कवेनेन्टेड सेवाओं के लिए घलाया करता था। (2) अनकवेनेन्टेड सेवाओं के यूरोपियन सदस्य भारतीय सदस्यों के साथ मिलकर कवेनेन्टेड सेवाओं में प्राप्त सुविधाओं एवं विशेषाधिकारों के विरुद्ध आदाजें उठाने लगे थे। सन्‌ 1861 दो अधिनियम के अत्तर्पत दोनों प्रकार की सेवाओं में पदोगति के क्षेत्र एव अवसर बढ़ाये गये। सन्‌ 1879 में लार्ड लिटन ने यह माना क्रि अनकवेनैन्टेड सिविल सर्विस में भारतीयों का प्रतिशत 1666 तक रहा है। इसी समय कवेनेन्टेड और अनऊवेनेटेड के काइरों मे भेदभाव वदने लगा जिसे ठीक करने के लिए भारतीय सेवाओं का विस्तार क्रिया गया। सन्‌ 1989 तक आते-आते अनकवेनेन्टेड प्रशासनिक सेवाओं का एक बहुत बच्च भाग प्रातों में कार्य करने लगा और घीरे-धीरे उन्हें प्रातीय मिविल सर्विस के नाम से जाना जाने लगा। वाद में प्रातीय सेवाओं में भी इतनी अधिक भीड़ इकट्टी हो गई कि उनके नीव के स्तरो ओर पदों को पृथक्‌ करने की आयश्यकता अनुभव हुई जिसने अधीनस्य सेवा नाम की छोटी भारतीय सेवाओं को जन्म दिया। उक्त विकाम को निम्न ढय से प्रस्तुत क्रिया जा सकता है - भातत में लोक सेवाए कपेनेन्टेड रिष्ट अनददेनेन्टेड कनिष्य अखिल भारतीय... केन्रीय सेवाए प्य पवद ` ` अेनत्वप्चैकद्‌ हर्प्परियल सेदाए प्रस्तुत तालिका भारत में लोक सेवाओं के वर्षीकरण का विकास यतलाती है। सेवाओं কী कार्यद्रशलत्ता के लिए आवश्यक था कि उन्हें उच्च और विम्न द्रेणियों में विभाजित क्रिया जाए कितु साथ-ही-साथ सामाजिक न्याय और राष्ट्रीयता का यह भी तदाजा था कि इन




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