मुद्रा विनियम तथा अधिकोषण भाग 1 | Mudra Viniyam Tatha Adhikoshan Bhag 1

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Mudra Viniyam Tatha Adhikoshan Bhag 1  by पी. एस. गोलवलकर - P.S. Golwalkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बन मर करती है जिनकी অল विना हमे सुदा के स्वरुप की पूरे कल्पना नहीं हो सकती । सुद्रा के सस्पूर्ण कार्यों को हम तौन भागों में विभाजित कर सकते हैं :-- | (१) भाधसिक काय (एसंशाशाए कंणालत075) 1 (२) गोर काय ( 86८070॥1ए চ000019105 ) 1 , - (३) आकस्मिक कार्य (092607500€ [70:00002$ )। १. प्राथमिक कार्य : सुद्रा के प्राथमिक कार्य वे हैं जो मुद्रा द्वारा किसी समय तथा किसी सी समाज में अवाधित'झूप से हो। ये कार्य दो ई :- विनिसय-साध्यस्‌ तथा सूल्यमात्त श्चथवा सूल्यमापन का साधन्‌ । ४ শ্বিনিনয-লাহষম (৭7৩0 ০6 80720) : সরা ঈ অব- आह्वता होने के कारण वह विनिमय सें सुगमता लाती है। सब प्रकार की चस्तुओं के सूल्य मुद्रा-माध्यस में प्रकट होने के कारण चस्तु-चिनिसय की कठि- नाइयों को सी वह दूर करती है। सुद्वा के द्वारा पहले हम अपनी सेवाओं अथवा अतिरित्त उत्पादन को बेचकर सुद्दा पर अधिकार आप्त करते हैं. तथा उसी सुद्रा से फिर इम अपनी आवश्यकताओं की पूति के सिए अन्य चत्र अथवा सेवाओं को खरीदते हैं। अतः वही सुद्गा स्वेग्राह्य हो सकती है एवं सर्घेमान्य रूप से चलन में आ सकती है जो इस प्राथमिक तथा श्रत्यावश्यक कार्य को करे। मुद्रा की हसे इसीलिए आवश्यकता है कि वहं हम दूसरी दस्तुओं पर अधिकार दिलाती है--वह हमारी क्रयशक्ति है ॥ भ.मूर्यसान या मृल्यसापन का साधन (त्प्ल ठय ऽपतत्‌ 0६ ए४1७८) : प्रत्येक वस्तु के नापने के लिए हमें किसी न किसी मापक की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार गज, दूरी नापने लिए तथा पौण्ड, सन, सेर, छुटाक, নন नापने के लि्‌ हं, उसो प्रकार सुद्ध न्य चस्तुर् के मूल्यों सें क्या परस्पर सन्वन्ध है यदह वतलाती, हे, र्यात्‌ सद्र मूल्यमापन का कार्य करती है | इसी कारण सब चस्तुओं का मूल्य सुद्धा सै नापा जाता है श्चर्धात्‌ सुद्धा मेँ प्रकट किया जाता है जिसे हम ल्य कहते है ! सुद्रा के इस कार्य द्वारा वस्तुओं के परस्पर सुल्यों की तुलना करने तथा उनके मूल्य निश्चित करने में सुगमता होती हे 1 इस प्रकार चस्तु-विनिमय में मूल्यमापन के अभाव की जो कठिनाई थी वद्‌ मी दूर दो जाती है तया धिनिमय का कायं अधिक सुगम हों जाता है। « २. गोण कायं : पधमिक कार्य समाज की प्राथमिक आर्थिक न्यवस्था में सुद्धा-्वस्तु आगरा पूर्ण किये जाते हैं परन्तु ये गौण कार्य समाज का आर्थिक जिकास होने के उपरान्त हो इृष्टिगोचर होते हैं सथा इन कार्यों की उत्पत्ति भो




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