शिक्षा और समाज व्यवस्था | Shiksha Aur Samaj Vyavstha
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ थिक्षा और समाज-व्यवस्था
समाज द्वारा एक भ्रच्छे नागरिक के लिये हितक र समझी जाने बाली बातों पर
झ्राधारित न होकर, उसके अपने निरीक्षण तथा निप्फर्षों के फलरत्ररूप होती है ।
वैज्ञानिक भावना तथा राज्य द्वारा विज्ञान के प्रयोग के ढग में यह संघर्ष अ्रन्ततः
विज्ञान की प्रगति को ही रोक सकता है । क्योकि कालान्तर में वैज्ञानिक प्रगति
का रूठिवादिता तथा अन्धविश्वास को बढाने के लिये अधिकतर प्रयोग किया
जायेगा । इस सम्भावना को साकार न होने देने के लिये यह श्रावश्यक है कि
विज्ञान की रुझान प्रकट करने वाले वालको को नागरिकता की सामान्य शिक्षा
से छूट देकर चिन्तन की स्वतन्त्रता दी जानी चाहिये। परीक्षाओ्रों में विभेष
योग्यता प्रदर्शित करने वाले परीक्षाथियों को अपने नाम के पीछे एल० दी०
(लाइसन्स्ड ठु थिक-चितन स्वातश्य प्राप्त) अ्रक्षर जोड़ने की श्रनुमति दी जानी
चाहिये । तत्पश्चात् ऐसे लोगों को अपने से बडे लोगों को बुद्धिहीन सममन के
श्राधारपर किसी पदसे वचित नही कियाजा सकेगा
यदि जरा गंभी रतापूर्वक विचार किया जाये तो प्रतीत होगा कि सत्य का
बिचार ही ऐसा है, जिसका नागरिकता के सामान्य उद्देश्यों से तादात्म्य स्थापित
करना कठिन है। भ्रवश्य ही पलवादियों [(प्राग्मेटिस्ट्स) की भाँति कहा जा
सकता है कि सत्य के परम्परागत विचार में कोई बल नहीं रह गया है तथा सत्य
वही है, जिस पर सुविधापूर्वेक विश्वास किया जा सके | इस धारणा के अनुसार
पालियामेट के अधिनियम के द्वारा सत्य का रूप निर्घारित क्रिया जा सकता है ।
ले हन्ट का युवराज (प्रिंस रीजैन्ट) के मोटापे मे विश्वास उनके लिये असुविधा-
जनक सिद्ध हुआ । क्योकि इस कारण उनको वदी होना पड़ा। इसका दूसरे शब्दों
में यह मतलब हुआ कि युवराज दुबले थे । ऐसे मामलों में पलचादी के दर्शन को
स्वीकार करना कठिन है । निस्सन्देह युवराज मोटे रहे होंगे। अवश्य ही में ऐसे
कई तकों की कल्पना कर सकता हूँ जो इस निष्कपं से बचने के लिये पेश किये
जा सकते है। “मोटा” एक सापेक्षिक पद है ।सुके उस अ्रवसर का स्मरण हो
श्राता है, जब ऋ्राइस्ट चर्च कालेज के दिवंगत प्राचार्य ( लेट मास्टर आफ़
क्राइस्ट्स ), जो स्वयं एक बडी हस्ती थे, एक मौज में बैठे थे। अपने-आपको
हमारे युग के दो खूयाति-लब्ध लेखकों के वीच बैठे पाकर वे वोले कि “मैं इस
समय अपने-आपको अति दुबला महसूस कर रहा हूँ।” अपने मुटापे के लिये
पुरस्कृत सु्नरों की तुलना में युवराज दुबले रहे होंगे । इसलिये ले हन्ट की उक्ति
को और णुद्ध करने के लिये कुछ ऐसा कहना पड़ेगा कि युवराज अधिकतम स्थल-
काय एक प्रतिशत वयस्क पुरुष-वर्ग में आते थे यह मौ कहा जा सकता है कि
“बुचराज के भार का उनकी ऊँचाई से अनुपात साम्राज्य की केवल एक प्रतिशत
पुरुष प्रजा को छोड़कर शेप सभी से अधिक है ।” यह कथन भी सदेहास्पद हो
सकता है। ऐसी स्थिति में एक प्रतिशत के स्थान पर दो प्रतिशत रखकर इसे
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