रामायण एवं महाभारत का शाब्दिक विवेचन | Ramayan & Mahabharat Ka Sabdik Vivechan

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Ramayan & Mahabharat Ka Sabdik Vivechan by शिवसागर त्रिपाठी - Shivsagar Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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গৃণ্মাসলন্‌ हमारे सहयोगी डा० शिवसांगर त्रिपाठी, सहाचायें, संस्कृत-विभाग, अपनी रचनाप्नों के लिए सुप्रसिद्ध हैं। उनके भ्रपरिमित प्रध्यवसाय एवं लगन का सुफल सद्य प्रकाशित ग्रग्थ “रामायण घझौर महाभारत का शाब्दिक विवेचन है । इसमे राष्ट्रीय महाकाब्यों में प्राध्व विशिष्ट निर्वेचनों का सांगोप्रोग अ्रध्ययन प्रस्तुत किया है। रामायण प्ौर महाभारत मे लगभग 600 शब्दों के निवंचन उपलब्ध होते है। (दष्टग्य, परिशिष्ट-2) इन समग्र निर्वेचनों को डा० त्रिपाठी ने तीन भागों में विभक्त किया है : देविक, भोतिक एंवं प्रकोर्ण । जैसा कि सुविदित है व्याकरण एंव निरक्‍त का इस देश की चिन्तन-परम्परा में विशिष्ट स्थान रहा है । बाद मे चलकर निरक्त से कही प्रधिक मद्ृत्व व्याकरण का हो गया | किन्तु रामायण एवं महाभारत में निरुकत की अ्रवृत्तियां एवं घाराए उसी प्राश्यमेजनक निर्वेचन-परम्परा में स्‍्नात है। इसके लिए भभिमन्धु, जमदग्नि, प्रति प्रादि प्रनेक ऋषि, उमर, सरमा, भ्रसूर, राक्षस आदि के निवंचन द्रष्टध्य हैं । सुरा पमे वाले सूर ओर सुरान पीते वाले ्रषूर के निर्वचन उप्त वेदिक परम्परा के प्रधिक निकट है, जिसमे तद वानामबुरत्वमेक' के द्वारा भ्रसुरत्वको प्रतिष्ठित किया था। “वस्तुतः विचारतत्त्व या भ्रथंको प्राचीन शब्द पर श्रारोपित करने की संशक्त परम्परा शब्दमूलक संस्कृति का बेशिष्ट्य होता है । यह प्रारोप भनेक श्रधारों पर होता है। इन सभी प्राघारों का प्रामारिएक विवेचन एवं खोज डा० त्रिपाठी के इस ग्रन्थ को प्रमुख विशेषता है (द्र० विपय॑-प्रवेश एवं प्रथम प्रष्याय) यही नही इन निवेचनो के श्राध।रे पर बदलती हृई जिस सास्कृतिक चेतना का विकांत्त होता है उसका विशद एवं तत्त्वस्पर्णी भालोचन डा. त्रिपाठी की प्रतिभा का प्रमाण है । (द्वर० नवम झष्याय) । भुझे विश्वास है कि भाषाशास्त्री, निशक्तकार एवं वेयाकरण इस ग्रन्थ का स्वागत करेंगे तथा ऐतिहासिक प्िद्धान्तो के श्राधार पर जिस शब्दकोय का निर्माण देकन कालेज, पूना मे विगत कर वर्षों से हो रहा है, उस भगीरय प्रयक्ष की साथ्थंक झ्वदान डा. त्रियाठी जी का ग्रन्थ देगा । उनकी यशस्वी एवं सफल सारस्वत् साधंना के लिए में हृदय से मद्भूल कामना करता हूं 1 डॉं० रामचन्द्र द्विवेदी प्राचार्य, संस्कृत-विमाग लिदेशर, जैव धनुशीलन केन्द्र तथा मानविकी पीठ राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर ।




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