कृण्वन्तो विश्वमार्यम् | Kranvanto Vishvmaryam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृथ्वी के सारे लोग इस देश के लोगों से अपना अपना चरित्र सीखें। प्रश्न उठता है कि, यह कार्य कैसे किया जाय? इसका मार्मिक विवेचन महाभारत के शांतिपर्व में उपलब्ध है। असंस्कृत जीवन जीनेवाले दस्युओं को संस्कृति संपन्न कैसे बनाया जाय ऐसा प्रश्न सम्राट मांधाता ने पूछा है और उसके उत्तर में विष्णुरुपघारि इंद्र ने उन्हे आर्य संस्कृति का अंग बनाने के लिए कुछ सूत्र दिये। प्रथम उन्हें माता-पिता एवं गुरु की सेवा का महत्व समझाया जाय। वैदिक कर्मकांडके जो सरल स्वरुप है'उनके अनुसार उनसे धर्म कर्म कराया जाय। जनहित के लिए उन्दे कुर. बावडी, घाट, प्याऊं, इत्यादि बनाने की प्रेरणा दी जाय। अहिंसा, सत्य, अक्रोध, शौच, इत्यादि नैतिक एवं चारित्रिक त्रतोका महत्व उन्दे समज्ञाया जाय, इत्यादि। संक्षेप मे उनके साथ आर्यो का सामाजिक अभिसरण हो! इस समरसतासेही सदुगुणोका संक्रमण संभव होता है। सभी को आर्य बनाने के लिए इस देश के युवकों को प्रथम स्वयं आर्य क्नना होगा। जीवन को सदाचारमय एवं उच्चत बनाना होगा। विदेशियों की ओर देखनेसे पहले हमारे ही समाज के उपेक्षित अंगों को समरसता के माध्यमसे हिंदुत्व बोध कराना होगा। आज इसकी नितांत आवश्यकता है। इस महत्‌ कार्य के लिए आवश्यक पर्याप्त जानकारी एवं प्रेरणा प्रस्तुत ग्रंथ में उपलब्ध है। -श्रण्वन्तु विन्वे अमृतस्य पुत्राः इस पवित्र वेदवाणी के साथ लय मिलाकर पठन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा - हे मृत्युंजय संस्कृति के सुपुत्रो इस ग्रंथ को अवश्य पढिए टेसा कहने का जिस ग्रंथ को देखकर वार बार मन होता है ऐसी यह मा. ङो. शरद हेवाककर जी की कृति प्रकाशित करके अ. भा. इतिहास संकलन समिति ने एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्य संपन्न किया है। परमदेशभक्त स्व. पू. बाबासाहेब आपटे जी के जन्मशताब्दि निमित्त उनकी पुण्यस्मृति में यह अत्यंत औचित्यपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करने के उपलक्ष्यमें समारोह समितिका हार्दिक अभिनंदन। इति । धर्मश्री, पुणे भारतमाता की सेवामे दि. १/६/२००४ ০ ৮৮৬১ श्री शिवराज्यभिषेक दिन कि किए: ना




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