स्वतंत्रता-संग्राम-इतिहास, उत्तर प्रदेश की योजना के अंतर्गत प्रकाशित | Swatantrta-Sangram-Itihas, Uttar Pradesh Ki Yojna Ke Antargat Prakashit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीमन्त नाना धेभूपन्न शासकीय श्रतुमार्नो स्ते पेशवा की जागीर नथा मन्यन्ति 5९ নালা रूपये की थी, जिससे ८०,००० रू७ वापिक आय थी | हीरे, जवाइरास गधा धाम पणय সপ স্বর ৮৯ १ इनके अतिरिक्त थे, जिनका सूल्य लगभग १1 लाग्य था । লা ছিলি को देखकर स्थानापन्न कमिश्नर बिटर से शासन হা ঢা ৯ स्तुति ही कि श्रीमन्त नाना धरधूपन्त को वाजीराच पेशवा की ८ लाख শ্রানিক্ক ঘন্হান ক্কা কয়ে भाग अबश्य दिया जावे, जिससे आश्िस परिवारों का भरम्पन्पोध्णन না হট, यह धन-राशि धीरे-धीरे भले दों कम कर्‌ दी जाय | परन्तु प्रांतीय गयनेर ने इसके विरुद्ध अपनी संस्तुति दौ 1 उसक्रे खिचार से লিন পানি पेशवा-परिगार तथा अरत के लिए पर्याप्त थी | नाना साइव द्वारा अतिथि सत्कार । इतना सब होने पर भी श्रीमन्त লালা धृधृषन्त ने अपने रहन-सहन तथा आयधार-व्यवद्ार सें कोई परियतन नहीं किया | कानपुर में स्थित तथा आनेचाले अंग्रेज पदाधिकारियों को अथवा आगन्तुको को नाना साहव बडे आपदर-सत्कार से बिटूर सें ग्रामस्त्रत करते थे । एक समकालीन संवाददाता लिखता हैं नाना साद्व को भली. भाँति जानता था। उनको उत्तरी प्रान्तों में सर्वोत्तम और उच्चकोटि का सत्कारकर्ता भारतीय नागरिक समझता था। अमानुपिक अत्याचार करने का चिचार उन्तक्रा कभी भी नहीं हो सकता था। नाना साहब को अंग्रेजों से मिलने पर राजनीति की बाते करने का बड़ा उत्साह था।” उपये क्त संबाद- दाता पुनः लिखता है कि: | “नाना ने सुझसे कई अश्न किये, उनमें से ये याद ই १--लाडं डलहौजी क्या ग्रचध के नवाव से मिलना पसन्द्‌ नदीं करेगे लाड हिज ने तो ऐसा अवश्य किया था) र क्या आप सोचते हैं कि कनेत्त सलीमैन, लाड डलहौजी को अधधघ हड़पने के लिए राजी कर लेगा ? वह गबनर जनरल के शिविर में इस आशय से यया अवश्य है?” ..._ १. आगरा नैरेटिबा--अप्रैल, লহ तथा जन, १८९१ ९० पेरा-१५ } परिशिष्ट \, नाना खाहव द्वारा २९ दिसम्बर १८५२ ई० . के संचालकों के नाम आर्थना-पत्र तथा उनका उस पर निर्णय ২. কে লে: “ভিতর জাল ছি इंडियन सन्‌ ६८९१ ई० की घटना का वर्णन । का कम्पनी न यन स्यूदिनी पर ३०७,




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