हज्ज व ज़ियारत | Hajj Va Ziarat

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Hajj Va Ziarat by इमाम अहमद रज़ा ख़ान - Imam Ahmad Raza Khanफ़ाज़िले बरेलवी अलैहिर्रह्मा - Fazile Barelavi Alaihirrahma

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इमाम अहमद रज़ा ख़ान - Imam Ahmad Raza Khan

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फ़ाज़िले बरेलवी अलैहिर्रह्मा - Fazile Barelavi Alaihirrahma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४०) ४१ ४२ जा डर প্রি बे सबब न मारे। न कभी मुँह पर मारे। हत्तलमक़दूर उप्त पर न सोए कि सोते का बोझ॑ ज़्यादा हो जाता है। किसी से बात कौरा करने को कुछ देर ठहरना हो-तो उतरे अगर मुमकिन हो। सुब्हने शाम उतर कर कुछ देर पियादा चलने में दीनी दुन्यवी बहुत फ़ाएदे हैं। बहुओं और सब अरबों से बहुत नर्मी से पेश आए। अगर वो सख्ती करें अदब से तहम्मुल करे। इस पर शफ़ाअत नसीब होने का वअदा फ़रमाया है। ख़ुसूसन अहले हरमैन, ख़ुसूसन अहले मदीना, अहले अरब के अप्ञआल पर एञूतराज्ञ न करे। न दिल मेँ कुदूरत लाए! इनमे दोनों जहान की सदत है। हम्माल यनी ऊंट वालों को यहाँ के से किराए वाले न समझे। बल्कि अपना मछ्दूम जाने और खाने पीने में उन से बुख़्ल न करे कि वो ऐसों से नाराज़ होते हैं और थोड़ी वात में वहुत ख़ुश हो जाते हैं और उम्मीद म ज़्यादा काम आते है।




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