श्री उपासकदशांगसूत्रम | Shri Upasak Dashang Sutram

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Shri Upasak Dashang Sutram by आत्माराम जी महाराज - Aatnaram Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ उपासकदशाडु-सूत्रम्‌ ৮১৯৯১ ১// ১১/৪১/৯৮১৬ ১৬/১০/২২৩০ সপ ৯১/১১/১১৯০ তত কি কিরে गया है तो यह उचित ही है। विचारों का परिमार्जन श्रौर भाषा का सौष्ठव तो प्रत्येक बात के लिए प्रावश्यक है । श्रुतज्ञान का व्यापक श्रर्थ है, साहित्य । वैदिक परम्परा मे वेदो को श्रक्षण्ण वनाए रखने के लिए विविध प्रयत्न किए गए । पदपाठ, घनपाठ, जटापाठ रादि के द्वारा वेदो के पाठ तथा उच्चारण को श्रव तक जौ भ्रक्षण्ण रखा गया है, वह एक सहान्‌ भ्राइदर्य है। हजारो वर्षों से चली সা रही चीज को इस प्रकार स्थिर रखने का उदाहरण ससार में दूसरी जगह नहीं मिलता। किन्तु जैन परम्परा ने इस विपय में जिस विशाल हृदयता का परिचय दिया है, वहु वैदिक परम्परा में वही है। अध्ययन की दृष्टि से देखा जाए तो जैन आराचार्यो ने वैदिकदर्शन तथा श्रन्‍्य साहित्य मे जो रुचि दिखाई है वह तो वैदिक परम्परा मे नही दिखाई देती । जब हम शकराचार्य तथा वाचस्पति मिश्र सरीखे विद्वानों द्वारा किए गए ज॑ंनदर्शन के खण्डन को देखते हैं तो हंसी आती है। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होने जैनदर्शन का कोई ग्रन्थ उठाकर देखने का प्रयत्न ही नही किया । कुछ जेन श्राचार्यों ने भी वैदिकदर्शनो को बिना समझे ही उसका खण्डन कर दिया है, किल्तु सिद्धसेन दिवाकर, श्रकलक, विद्यानन्द, वादिदेवसुरि, हैमचन्द्र तथा यशोविजय उपाध्याय श्रादि श्रनैक विद्वात ऐसे हैं जिनके विषय मे यह बात नहीं कही जा सकती । उन्होने वैदिक- दर्शनो को विधिपूर्वक पढा है श्रौर पूर्वपक्ष के रूप में भ्रच्छी तरह लिखा है । वेदिकदर्शनो मे ऐसा एक भी श्राचायं नही मिलता । ब्राह्मण पण्डितो में भव भी यह धारणा बद्धमूल है कि नास्तिक ग्रन्थों को ही पढना चाहिए । जैन परम्परा मे दूसरी बात ग्रन्थ-भण्डारो की है। जैसलमेर, पाटठण श्रादि के ग्रन्थ-भण्डार भारतीय सस्क्ृति की अमृल्य- निधि हैं । वहाँ केवल जैन ही नही, बौद्ध तथा वैदिक ग्रन्थों का भी इतना अच्छा सम्रह मिला जिनके श्राधार पर ही उन ग्रन्‍्थो का सरक्षण किया जा सका है। वेदिक परम्परा मे इस प्रकार के भण्डार सुनते मे नही आ्राए । कुछ भण्डार राज्याश्रित हैं किन्तु उनमे भी प्राचीन साहित्य कम है भ्रौर मध्येकालीन अ्रधिक | | . जैन भण्डार श्रौर साहित्य ने भारतीय इतिहास के निर्माण में महत्वपूर्ण योग दिया है। विण्टरनिजके शब्दो मे वर्ह उन्हे इतिहास कौ प्रमाणिक सामग्री उपलब्ध हुई है।




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