श्री सकडालपूत्र श्रावक की कथा | Shri Sakadalputra Shravak Ki Katha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
431
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१२)
हिसाब तो आजके गो रचक यत्ता ठे ई पर यह षाठ पमी तङ
मी हुई नम तक गाय दूष दती ररे । पाद् मे हानि शा सवी ११
इसका उत्तर बे ' नक मे देवे ई चीर मे ई-- भो गौ
सो रुपैये में खरीदी धौ दर गो दूर साच पालक के पास
युव मे रह भौर उघषे साय उता पदटा भी पच द ! गम
प्रस्पा में करीब १० महिने गौ दूप नहीं देती भत एवं इस समय
इसकी खुराक मी कम होती द-कैवक्त मदाजन ? ००) रुपे के बदले
मे पाष को र्दा सदिव गौ २२५) इ का मा पिशा । इसके
अल्लावा एड तपा गौ पत्र फ द्रवी छाम ভন । शस तरह
पसम छगानं पर विना दूष दने बाद गै म सरथ के बदले
श्यादा लाम दाता ही दै शानि कारक नहीं ।
समय है इस्त रूपन में कुछ अभतिशयाक्ति हो पर यददो
कहा भा सकता ই कि गौ बाडा दझूपे क्षेफर बयादा छाम देने
बाह्टी होती हे।
आज कत्त के कई ज्ञोग पोडी हैसियत दोत हुएमी झपने
को ज्यादा हैसियत परा्षा प्रमाशित करने ८ लिये प्राएठाई्वर
बहुत बड़ा क्षेत हैं | यथपि ये बिना झद्बाप्ती इसख्तठ की इमारत
ख़डी कर महस्त क रइन बाखे कश्जा मात हैं. पर किसी समय
समय ष झांक ऐसा भाता है कि इनका सारा दिखाबटी सुख
नष्ट हो क्षाता रै। भोर ये टूकड़ टुकड क ज्लिय हाप कैसान
भाते पन मात हैं।
सकदाल की नीति ऐसी नहीं थी; पर वट बच की मांति थी।
बनए्पति विद्वान क बिशपक्ञों का कहना दे कि बट एच
इिम्द्स्पान के सिद्याय और किसी श मे नदी हात्र । तप्त
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