श्री सकडालपूत्र श्रावक की कथा | Shri Sakadalputra Shravak Ki Katha

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Shri Sakadalputra Shravak Ki Katha by आचार्य विनयचन्द्र - AacharyaVinaychandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१२) हिसाब तो आजके गो रचक यत्ता ठे ई पर यह षाठ पमी तङ मी हुई नम तक गाय दूष दती ररे । पाद्‌ मे हानि शा सवी ११ इसका उत्तर बे ' नक मे देवे ई चीर मे ई-- भो गौ सो रुपैये में खरीदी धौ दर गो दूर साच पालक के पास युव मे रह भौर उघषे साय उता पदटा भी पच द ! गम प्रस्पा में करीब १० महिने गौ दूप नहीं देती भत एवं इस समय इसकी खुराक मी कम होती द-कैवक्त मदाजन ? ००) रुपे के बदले मे पाष को र्दा सदिव गौ २२५) इ का मा पिशा । इसके अल्लावा एड तपा गौ पत्र फ द्रवी छाम ভন । शस तरह पसम छगानं पर विना दूष दने बाद गै म सरथ के बदले श्यादा लाम दाता ही दै शानि कारक नहीं । समय है इस्त रूपन में कुछ अभतिशयाक्ति हो पर यददो कहा भा सकता ই कि गौ बाडा दझूपे क्षेफर बयादा छाम देने बाह्टी होती हे। आज कत्त के कई ज्ञोग पोडी हैसियत दोत हुएमी झपने को ज्यादा हैसियत परा्षा प्रमाशित करने ८ लिये प्राएठाई्वर बहुत बड़ा क्षेत हैं | यथपि ये बिना झद्बाप्ती इसख्तठ की इमारत ख़डी कर महस्त क रइन बाखे कश्जा मात हैं. पर किसी समय समय ष झांक ऐसा भाता है कि इनका सारा दिखाबटी सुख नष्ट हो क्षाता रै। भोर ये टूकड़ टुकड क ज्लिय हाप कैसान भाते पन मात हैं। सकदाल की नीति ऐसी नहीं थी; पर वट बच की मांति थी। बनए्पति विद्वान क बिशपक्ञों का कहना दे कि बट एच इिम्द्स्पान के सिद्याय और किसी श मे नदी हात्र । तप्त




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