विवेकानन्द साहित्य [प्रथम खण्ड] | Vivekanand Sahitya [Pratham Khand]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वामी विवेकानन्द कभी कभी समय की दीर्घ अवधि के वाद एक ऐसा मनुष्य हमारे इस ग्रह मे' आ पहुँचता है, जो असदिग्ध रूप से दूसरे किसी मडल से आया हुआ एक पर्यटक होता है, जो उस अति दूरवर्ती क्षेत्र की, जहाँ से चह आया हुआ है, महिमा, झ्क्ति और दीप्ति का कुछ अश इस दु खपूर्ण ससार में लाता है। वह मनुष्यो के बीच विचरता है, लेकिन वह इस मत्यंभूमि का नहीं है। वह है एक तीर्थयात्री, एक अजनबी---वह केवल एक रात के लिए ही यहाँ ठहरता है। वह॒ अपने चारो र के मनुष्यो के जीवन से अपने को सम्बद्ध पाता है, उनके हर्ष-विषाद का साथी बनता है, उनके साथ सुखी होता है, उनके साय ढुं खी भी होता है, लेकिन इन सबो के बीच, वह यह कभी नही भूछता कि वह कौन है, कहाँ से आया है और उसके यहाँ आने का क्या उद्देश्य है। वह कभी अपने दिव्यत्व को नही भूलता। वह्‌ सदैव याद रखता है कि वह महात्‌, तेजस्वी एवं महामहिमान्वित आत्मा है। वह जानता है कि वह उस वर्णनातीत स्वर्गीय क्षेत्र से आया हुआ है, जहाँ सूर्य अथवा चन्द्र की आवश्यकता नही है, क्योकि वह क्षेत्र आलोको के आलोक से आलोकित है। वह जानता है कि जब ईव्वर की सभी सताने एकं साथ जानन्द के लिए गान कर रही थी', उस समय से बहुत पूर्व ही उसका अस्तित्व था। ऐसे एक मनुष्य को मैंने देखा, उसकी वाणी सुनी और उसके प्रति अपनी श्रद्धा अपित की। उसीके चरणो मे मैंने अपनी आत्मा की अनुरक्ति निवेदित की । इस प्रकार का मनुष्य सभी तुलना के परे है, क्योकि वह्‌ समस्त साघारण मापदण्डो अर आदर्शो के अतीत है। अन्य ভান तेजस्वी हो सकते हैं, लेकिन उसका मन प्रकाशमय है, क्योकि वहु समस्त ज्ञान के सोत के साय अपना सयोग स्थापित करने में समर्थ है। साधारण मनुष्यों की भाँति वह ज्ञानाजेन की मथर प्रक्रियाओं द्वारा सीमित नही है। अन्य लोग शायद महान्‌ हो सकते है, लेकिन यह महत्त्व उनके अपने बगगे के दूसरे छोयों की तुलना में ही सम्भव है। अन्य मनुष्य अपने साथियों की तुलना में साथु, तेजस्वी, प्रतिभावान हो सकते हैं। पर यह्‌ सवे केवर तुना को वात है। एक सन्त साधारण मनुप्य से अधिक पवित्र अधिक पुण्यवान, अयिक एकनिष्ठ दै। कितु स्वामी विवेकानन्द के सम्बन्ध मे




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