ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता साहित्यकार | Gyanpith Puraskar Vijeta Sahityakar

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Gyanpith Puraskar Vijeta Sahityakar by वीरेन्द्र जैन - Virendra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुरस्कार के प्रतीके स्वरूप दी जाने वाली वाग्देवी को यह्‌ प्रतिमा मूलतः धार, मालवा के सरस्वती मंदिर की है, जिसकी स्थापना उज्जयिनी के विद्याव्यसनी नरेश भोज ने 1035 ईसवी में की थी | यह बब ब्रिटिश म्यूजियम, लदन में है। भारतीय ज्ञानपीठ ने साहित्य-पुरस्कार के प्रतीक के रूप में इसे ग्रहण करते हुए शिरोभाग के पाश्वं मे भामंश्ल और सम्मिलित किया है। उसमें तीन रश्मि-पुंज हैं जो भारत के प्राचीनतम जैन तोरण-द्वार (कंकाली टीला, मथुरा) के “रत्नञ्य' को प्रतीकित करते हैं। हाथ मे कमंडलु, पुस्तक, कमल और अक्षमाला ज्ञान तथा ऊध्वें- चेतना के प्रतीक है। पुरस्कार विजेता को इस अ्रतिमा की कांस्य अनुक्ृति भेंट में दी जाती है।




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