श्री प्रश्न व्याकरण सूत्रम् [पूर्व-खण्डम्] | Shri Prashna Vyakaran Sutram [Purvakhandam]

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Shri Prashna Vyakaran Sutram [Purvakhandam] by दु:खमोचन झा - Dukhamochan Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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&ু परन व्याकरण का स्थान प्रस्तुत प्रश्न व्याकरण शास्त्र मे उपरोक्त आगम लक्षण मिलते है इसलिये इसको आगम कहने मे कोई धाधा नही है। अब यह विचारना है कि प्रश्न व्याकरण का आगम मे कोनसा स्थान हू ? बह कितना महत्त्व रखता है? (द्शवेकालिक सूत्र की भूमिका मे यद्‌ वता द्विथा गया द कि) श्वे० सम्प्रदाय की मूर्ति पूजक और अमूर्ति- पूजक दोनो सम्प्रदायों के मान्य आगम ३२ हैं। आवश्यक से अतिरिक्त अद्ग, उपान्न, मूल और छेद के विभाग से ३१ आगम होते हैं। उनमे अह्ज का स्थान सर्व प्रथम है । सामान्य रीति से देखा जाय तो समी श्रागम चङ्ग प्रविष्ट श्नौर अद्ध बाह्य दन दो भेद्दे में आ जाते है । कालिक एवं उरकालिक रूप से अद्ड बाह्य शास्नों को दो श्री मे पिनक्त कर नन्दी सूत्र मे अज्ञ प्रविष्ट १२ कह्दे गये है। जेसे कि--से किंत॑ अग पत्रिट्ठ] २ दुबालसबिह प० तं०--“आयारो १ सूयगडों २ ठाणं ३ समवाओ ४ विचाहपन्नत्ती ५ सायाधम्मरहाओ ६ उबासगइसाओ ও अंतगडइसाओ ८ अगुत्तरोषबाइयद्साओ ६ परहाबागरणाइ १० विबागसुयं॑ ११ दिट्विवाओ १२५ ইলম प्रश्न व्याकरण का म्थान दृशम है । गणधरो के मद्गज्ञमय शब्दो में तीर्थंकर भगवान्‌ की बाणी का इसमे सम्रह है । इसका सूलरूप समवाय/ज्ञ सूत्र और नन्दरी मे द्वादशाङ्गी का परिचय देते हुए, प्रश्न व्याकरण का भी घर्णन आता है-- भश्न व्याकरण सूत्र के दो रूप हैं एक प्राचीन और दूसरा अर्वाचीन | समवा- याज्ञ और नन्‍दी आदि सूत्रों मे द्वादशाड़ी के अन्दर्दित जो प्रश्न व्याकरण का परि- चथ सिल्ता हूं वह इसका प्राचीन रूप है। पूर्वकाल मे अन्भुछ आदि प्रश्न विद्याये और दिव्य संवाद इसमे बहे गये ये । जिसके स्थि नन्दी सूत्र मे कहा है कि १० प्रश्न पूछे हुए और १०८ अप्रश्न-विना पूछे तथा १०८ प्रश्नाप्रश्न-पूछे या बिना पूछे दोनो तरह से शुभाशुभ कहदनेवाली बिद्या दै । अंशु प्रशन, व हु पश्न और आदर्श प्रश्न विद्या कही गई | ऐसे अन्य भी विविध अतिशय विद्याये और नाग कुमार सुपर्ण कुमार आदि के साथ दिव्य संवाद वत्ताये गये है। परिमित चाचना और इसका एक ही भरत स्कन्ध है। ४५ अध्ययन और ४५ हो उद्देश व समुद्देशकाल कहँ गये है। उसका पद परिणाम ६२ लक्ष १६ हजार लिखा है। समवायाहूृ मे कुछ विद्याये और भआचार्य भाषित, प्रत्येक चुद्धभापितादि का विशेष उल्लेख मिलता है । इन दोनो मे ५५ भध्ययन बताये गये दै, भिन्तु ्थानाङ्ग मूच के दशम स्थान मे प्रश्न ठार




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