बैठक की बिल्ली | Baithak Ki Billi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बेठक की बिल्ली / १७
নিই छोग अभी तक नहीं आईं ?” महेश बँठक के कोने में टेंगी घड़ी:
को देखता है ।
तीनों बैठक में आा गए हैं।
“इन्दु बेटा पिक्चर देखने गई है'*“आती ही होगी 1 साथ में वह दोनों
बच्चियाँ भी है**? वेटी का नाम लेते ही छालाजी का चेहरा खिल
जाता है ।
'लोलछा को देखे बहुत दिन ही गए हैं। और चन्द्रा ? उसकी भी तो
शादी पक्की हो गई है न ?' गंगा देवी का माया सिकुड जाता है ।*
बहू छड़की मुझे भाती नही है'*'न जाने क्यों ? जब देखो डंडी कौ,
शान मानूम होता है जताना चाहती है, हमः हम ही है
जालाजी हेसते है!
श्यो न जताएुकरिवह्- वह ही है ?” महेश की मुसकराहुट में
तिरस्कार है। कारण पता लगाना कठिन है ।” क्यों न जताएं कि
वह्'**वह ही है ? क्या मि० अय्यंगार विदेश मंत्रालय के सर्वेसर्वा:
नही हैं ? ज्येप्ठ पुत्ती को इस पर गये भी न हो ?”
मे तौ खीला अच्छी छगती है । अगर हमारी इन्दु भी लीला की
तरह होती, तो ***
तो एम० ए० के बाद कालिज में छेक्चरर हो जाती और য় বিন
में एक बार तुमसे झगड़ने टैक्सी लेकर आती*** अब महेश उपहास
छिपाने का प्रयत्न भी नहीं करता है । 7 ४
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