बैठक की बिल्ली | Baithak Ki Billi

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Baithak Ki Billi by मीनाक्षी पुरी - Minakshi Puri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बेठक की बिल्ली / १७ নিই छोग अभी तक नहीं आईं ?” महेश बँठक के कोने में टेंगी घड़ी: को देखता है । तीनों बैठक में आा गए हैं। “इन्दु बेटा पिक्चर देखने गई है'*“आती ही होगी 1 साथ में वह दोनों बच्चियाँ भी है**? वेटी का नाम लेते ही छालाजी का चेहरा खिल जाता है । 'लोलछा को देखे बहुत दिन ही गए हैं। और चन्द्रा ? उसकी भी तो शादी पक्की हो गई है न ?' गंगा देवी का माया सिकुड जाता है ।* बहू छड़की मुझे भाती नही है'*'न जाने क्यों ? जब देखो डंडी कौ, शान मानूम होता है जताना चाहती है, हमः हम ही है जालाजी हेसते है! श्यो न जताएुकरिवह्‌- वह ही है ?” महेश की मुसकराहुट में तिरस्कार है। कारण पता लगाना कठिन है ।” क्‍यों न जताएं कि वह्‌'**वह ही है ? क्या मि० अय्यंगार विदेश मंत्रालय के सर्वेसर्वा: नही हैं ? ज्येप्ठ पुत्ती को इस पर गये भी न हो ?” मे तौ खीला अच्छी छगती है । अगर हमारी इन्दु भी लीला की तरह होती, तो *** तो एम० ए० के बाद कालिज में छेक्चरर हो जाती और য় বিন में एक बार तुमसे झगड़ने टैक्सी लेकर आती*** अब महेश उपहास छिपाने का प्रयत्न भी नहीं करता है । 7 ४




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