इंग्लैंड का सामाजिक इतिहास | Englend Ka Samajik Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चासर-कालीन इंगलेंड নু करने का प्रयत्त कर रहा था, जिससे कि राष्ट्र के व्यापार की रक्षा तक, उसका नियंत्रण किया जा सके । इस नीति को सफल वनाने के लिये समुद्री वेड़े का होना आवश्यक है और एड्बड्ड तृतीय का सोने का नया सिक्‍का उसे शस्त्र तथा मुकुट सहित जलपोत में खड़े हुए प्रदरशशित करता है । राष्ट्रीय आत्म-चेतना अब उतर स्थानीय वफादारियों को तथा कड़े वर्ग-विभाजनों को समाप्त कर रही थी जो सामन्त युग के सर्वदेशीय समाज की विशेषताएं थीं और परिणामतः, फ्रांस को लूटने के लिये आरंभ किये गये सौ वर्षीय युद्ध में राजाओं और कुलीनों को नये प्रकार की झक्ति का समर्थन प्राप्त हो रहा था, यह थी आधुनिक प्रकार की प्रजातांत्रिक उद्धत दे भक्ति, जोकि सामंतीय राजनीति तथा युद्ध-विधि का स्थान ले रही थी ! क्रेसी तथा एगिंकोर्ट में अब वे “बलिष्ठ अश्वारोही” धनुधैर अपने देश के युद्ध में अगले मोर्चे पर थे जोकि इंगलैंड के अश्वारोही सरदारों और জালন্তী के साथ कंधे से জা লিলা कर फ्रांस की पुरानी अश्वसेना का पुंज के पुंज हनन कर रहे थे । शान्ति के पुरशासकों की संस्था, जोकि- ताज द्वारा राजा के प्रतिनिधि के रूप में पड़ौसी प्रदेशों पर शासन करने के लिये नियुक्त की गयी थी, स्थानीय लोगों से ही निर्मित थी और इस प्रकार से यह उत्तराधिकार की सामंतीय परंपरा से विपरीत दिशा में एक कदम था । किन्तु यह अधिकारी तंत्रीय राज्यतंत्र की केन्द्रीकरण मूलक प्रवृत्ति के भी विपरीत दिलश्ञा में एक कदम था : इसने राजा के लाभ के लिये स्थानीय संपर्को तथा प्रभावों को मान्यता दी और उनका उपयोग किया । यह एक ऐसा समभोता था जो इंगलिश समाज के (अन्य देशों के समाजों से पूर्णतः विशिष्ट समाज के रूप में) भावी विकास के लिये बहुत महत्वपूर्णो था । ये सब आन्दोलन--आशथिक, धामिक, राष्ट्रीय--पालियामेंट की कार्यवाहियों में लकते थे, जोकि स्वरूपतः एक मध्ययुगीन संस्था थी, किन्तु जिसका आधुनिकोकरण आरंभ हो चुका था। यह अब केवल सामंतों, पादरियों, न्यायाधीशों तथा नागरिक अधिकारियों की समिति मात्र नहीं थी जिसका कार्य राजा को परामश देना अथवा उसे तंग करना था। लोकसभा अब अपने लिये एक सीमित स्थान बना रही थी । यह संभव है कि उच्चस्तरीय राजनीति में लोकसभा के सदस्य दरबार की प्रतिस्पर्धी पार्टियों की चालों में साधन मात्र बनते हों, किन्तु अपनी ओर से वे छोटे नगरों और गांवों के नये मध्यवर्गो कौ श्रथं-नीति को ही ध्वनित करते थे, और प्राय: ही इसमें वे अपने वर्ग- स्वार्थो से निर्देशित होते थे, वे जल और स्थल पर लड़े गये युद्धों के अयोग्य आयोजन पर राष्ट्र का रोष व्यक्त करते थे, और देश में योग्यतर व्यवस्था तथा उचिततर न्याय के लिये निरन्तर मांग कर रहै थे, जिसकी पूर्ति अंसी -ट्यूडर के काल तक नहीं होने वाली थी ।




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