काँच-विज्ञान | Kanch Vigyan

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Kanch Vigyan by आर. चरण - R. Charan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ काँच-विज्ञान एवं सोलहवीं शताब्दियों में हैदास्टेन्दनाउ में काँच के कारखाने खोले गये और वहीं से यह उद्योग थुरेन्गीया प्रान्त में फैला । सन्‌ १६९४ में बहुत प्रकार की वस्तुएँ, जैसे कि पट्टिका काँच और सुपिर वस्तुएँ, स्टेन्शनाउ में निमित होती थीं। काउन्ट किन्सकी ने सन्‌ १७२२-८० के मध्य में एक दर्पण-निर्माण का कारखाना वर्गस्टाइन में और मनका- निर्माण का कारखाना स्वैका में खोला । अट्ठारहवीं शताब्दी के मध्य में, वोहेमिया प्रान्त के सफर कांच उद्योग को विदेशों में फैलने से रोका गया । अठारहबीं शताव्दी के अन्त में, नेपोलियन के यूद्धों एवं अंग्रेज़ी और फ्रेंच उद्योगों की प्रतिद्वन्द्विता के कारण, काँच उद्योग के लिए कठोर समय आया। परन्तु आज फिर से वोहेमिया काँच उद्योग का एक मुख्य केन्द्र हो गया है। जर्मनी ने कँच उद्योग की प्रगति में वहुत काम किया है। द्रेसदन निवासी एफ. सीमेन्स ने, सन्‌ १८७२ में, काँच-द्रावण के लिए प्रथम कुण्ड-भट्ठी' का आविप्कार किया। शाट और विकलमान ने कंच के उन गुणो का अध्ययन क्रिया जो कंच की रचना पर निर्भर होते हैं। शाट और एवे ने सन्‌ १८८० में, अनेक प्रकाशीय काँचों का निर्माण किया जिसमें पुराने तत्त्वों के स्थान पर नये तत्त्वों का प्रयोग किया गया। उन्होंने लेन्तों के अवर्गंक संयोजन बनाये | सन्‌ १८८४ में, शाट एवं गेनोसेन की प्रसिद्ध संस्था येना में स्थापित हुई । अमेरिका--अमेरिका में काँच उद्योग बहुत धीरे-धीरे स्थापित हुआ, यद्यपि लिखित विवरण यही बताते हैं कि देश का प्रथम उद्योग काँच-निर्माण ही था। वरजी- निया प्रान्त के जेम्स टाउन में, सन्‌ १६०९ में काँच का पहला कारखाना खोला गया और इसमें वोतलें, मनके एवं सस्ते आभूषण बनाये जाते थे। समीप के जंगलों की लकड़ी का ईंधन प्रयोग किया जाता था। सन्‌ १६२१ में, काँच का दसरा कारखाना खोला गया। दोनों ही कारखाने अधिक दिन तक न चल सके । सन्‌ १६५४ से १७६७ तक मनहटत द्वीप में भी काँच-निर्माण होता रहा। सन्‌ १७३९ मे, सी. विस्टार ने न्यू जर्सी प्रान्त के सलेम काउन्‍्टी में काँच का एक कारखाना स्थापित किया। सन्‌ १७६५ म, एस ° उवृलू ° स्टीगेल ने पेन्सिलवानिया प्रान्त के मैनहाइम नगर में कीच का एक कारखाना चलाया जो कि उसके अप्यय एवं क्रान्ति के कारण उत्पन्न मनन्‍्दी से सन्‌ १७७४ में ठप हो गया । १. वरर {प्च्०४९९




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