अंतर्ध्वनि | Antardhvani
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अन्तर््वनि
2. तुम भी अव जागो
मन की उत्कठाओ के
द्वारो को
मैंने खोल खोल कर
झाँका है
तन की आकाक्षाओ के
इशारो को
मैंने देख देख कर
भाँपा है
मैं फिर भी रहा
मूढ का मूढ ।
तन जाग रहा अपने में
डूब रहा
इस नश्वर जीवन के
मोह पाश में
भोग रहा
अपने को
दौड रहा
खाने की चाह मे
अपनी लालसा में।
मन भी झाक रहा
बाहर नर ककाल से
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