अंतर्ध्वनि | Antardhvani

Antardhvani by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्तर््वनि 2. तुम भी अव जागो मन की उत्कठाओ के द्वारो को मैंने खोल खोल कर झाँका है तन की आकाक्षाओ के इशारो को मैंने देख देख कर भाँपा है मैं फिर भी रहा मूढ का मूढ । तन जाग रहा अपने में डूब रहा इस नश्वर जीवन के मोह पाश में भोग रहा अपने को दौड रहा खाने की चाह मे अपनी लालसा में। मन भी झाक रहा बाहर नर ककाल से




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