उत्तर हिमालय-चरित | Uttar Himalay Charit
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रबोधकुमार सान्याल - Prabod Kumar Sanyal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हैं । हिमालय के माथे की जटाएँ जिस प्रकार पूरव की बोर दक्षिण असम से परे
बरमा तक जा उतरी हैं, पश्चिम हिमालय की जदाएँ उसी प्रकार सलेमान से आगे
कार्थार मकरान के मिलन-त्थान कर/ची की सागर-त्तीमा तक लठक गयी हैं। मुझे
ठीक-ठोक पता नहीं, शायद गान्धार-सहित सुप्राचीत 'इन्दसा या “इन्दरस्तान का
मोदा-मोटी यही ढाँचा था ।
दक्षिण से उत्तर हिमालय की ओर जाते हुए मुझे मालूम था, मैं प्राचीन
गान्धार पार करके जा रहा था । जा रहा था पश्चिमोत्तर कश्मीर की तरफ।
तक्षशिला से आगे अटक पुल पार करके ग्रेण्ड ट्रंक सड़क पेशावर और अफगान मतक
गयी है । लेकिन इसी सड़क के वीच से नौशेरा होकर एक अच्छी-सी शाखा-सड़क
र की ओर मरदान के मागे मालाकन्द से सीघे संदू तक चली गयी ह! मालाकन्द
दूसरी एक चौड़ी-चिकनी सड़क जंगल और पहाड़ी इलाके के भीतर से और भी
उत्तर चित्नाल राज्य पहुँची है । यहाँ हिन्दुकुश के क्रोड़-पर्वत हिन्द्राज से तीन प्रधान
नदियाँ उत्तर आयी हैं । एक का नाम है 'सोआत' या श्वेत, दूसरी क्वा 'चारखून'! कौर
और तीसरी का 'कुनार', जो चित्नाल से होती हुई जफगान नगरी जलालाबाद में
जाकर काबुल नदी से मिल गयी है । जठक के पास जा मिली है काबुल नदी और
महासिन्धुतद । चित्नाल सदा से कश्मीर की छत्तछाया में है ।
साम्राज्य के बचाव के लिए अंगरेज्ञों ने बड़े जतन से नये सिरे से उत्त र-पश्चिम
सरहद की सृष्टि की थी । उपमहादेश के और किसी भी इलाके में साम्राज्य की
सुरक्षा की ऐसी निर्दोष व्यवस्था नहीं है। इसके फलस्वरूप सकड़ों मील में फैली
उपत्यका नये सिरे से गठित होकर नैसगगिक सौन्दर्य का स्वप्न-लोक वन गयी है। ऐसी
स्वास्थ्यपप्रद और साफ-सुथरी उपत्यक्ता सारे भारत में और नहीं है। दूत्तरी ओर,
लंगरेख गासकों ने पड़ोसी स्वतन्त राष्ट पर कभी एतवार नहीं करिया मौर मुगलो के
हाथ से शासन की बागडोर छीन लेने के बाद से मुस्लिम राष्ट्रों से उन्हें डर और शंका
অনী हुई थी । फलस्वरूप सामरिक तैयारी के लिहाज से उनके हाथ में रावलपिण्डी
का नादंने कमाण्ड और क्वेदा का वेस्टर्न कमाण्ड खूब करीब थे । इस नादंनें कमाण्ड
के मातहत आउद पोस्ट, फॉरवर्ड पोस्ट या फ्रण्टियर गार्ड की संज्या भी कम नहीं
थी । ये सव हिन्दूकुश और हिन्दूराज पर्वतमाला के भीतर-भीतर पहरे में नित्य तत्पर
रहते । थे ऐसे सुरक्षित और जांचलिक कौशल से कायम किये गये थे कि जब भी कमी
और जैसी भी अवस्था में काम आते। उत्तर-पश्चिम सीमान्त में--जैसे; लेण्डीकोटल
मालाकन्द, दीर, चित्नाल या मास्तुज; रावलपिण्डी के दक्षिण या उत्तर में--जसे;
चकलाला, कोमारी या अठक, हैवेलियन, अवोटाबाद आदि-आदि । सर्वत्न वही एक ही
घाटी । उत्तर में चित्राल भौर दक्षिण में वलूचिस्तान--इन दोतों के बीच एक हजार
मील के भूभाय को नँयरेज लोहे की जंजीर और वारूद की ढेरी से सुरक्षित रख गये हैं।
उत्तरी कश्मीर को पहरा देने का प्रधान फौजी अड्डा था गिलगित एजेन्सी । हिन्दूराज
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उत्तर हिमालय चरित / १३
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