सांस्कृतिक गुजरात | Sanskritik Gujarat

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Sanskritik Gujarat by गोपाल नारायण वहुरा - Gopal Narayan Vahura

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 सस्ति गुजरात छ्प्पय रवि, शशि, जादव वंश, छुकुत्त्थ, परमार, तोंवर;: चहुवाण, चालुक्य, छिंद, सिलार, आसीवर; दोयसत, मकवाण, गर्क्ष, गोहिल, गहीलुतः चापोत्कट, परिहार, राव राठौड़, रोस-जुतः देवरा, टॉक, सिघव, अनग, मोतिक, प्रतिहार, दघिखट; कारटपाल, कोटपाल, हुन, हरितक, गोरकमाड, जट 11 दोहा ध्यान पालक, निकुन्भवर, राजपाल, अवनीस । कालछर के आदि दे, वरे वंत छतीस ॥*४ वारहठ और कहीवंचा लोग साधारणतया कहा करते है कि परमार, राठौड, जादव, चौहाण और सोलंकी ये पांच राजपूत अग्निकुण्ड सें ते निकले थे और फिर इन्हीं से निन्‍्यानवे जाखाए चल पड़ीं। राजपूतों का कहना है कि वे श्रसली क्षत्रिय हैं, परन्तु ब्राह्मण इसको अस्वीकार करते है क्योंकि क्षत्रिय तो कोई बचा ही नहीं था। इसका कारण यह बताया जाता है कि ब्राह्मणों के खाने-पीने में चौके-चूल्हे की कृत्रिम पवित्रता घुस पड़ी और राजपूत्त कन्याञ्रों का विवाह मुसलमान शहजादों के साथ करना जरूरी हो गया 1 श्रव हिन्दुओं में क्षत्रिय जाति ब्राह्मण्यों से दूसरे दर्जे पर नहीं गिनी जाती है वल्कि उसका स्थान वैश्य जाति के बनियों ने ले लिया है, जो राजपूत के हाथ का पानी भी नही पीते और च्रव “उजली वस्ती या उच्च वर की वस्ती के लिए 'ब्राह्मण-बनिया' एक विज्लेषार्थ-बोघक पर्याय वन गवा है 1 राजप्‌त मांसाहार करते है और मदछपान करते हैं । ये दोनों ही ऐसी बातें हे जिनको उनके “उजले' पड़ोसी अ्पविन्न मानते है । राजपत्तों में तो केवल दो ही नियमों का पालन करने की समझ रही है कि वे गोवध नहीं करते और उनमें विववा-विवाह नहीं ৫ 111 ০৮] 16. हम पढ़ चुके है कि राजपूत प्राचीन आये क्षत्रियो क वंशज नही हैः परन्तु इनमें से अधिकांश मेत्रकों, शको मौर हसो आदि की सन्तानं है जो उत्तर पश्चिम से आए थे । हरा जाति का तो नाम भी राजपूतों को एक शाखा में अब तक सुरक्षित है । राजपूत सूर्य, चन्द्र और अग्निकुल के हैं। चन्द्र- वंशियों में यादव मुल्य है, जिनके नेता श्री कृष्ण थे। ये लोग सम्भवतः उस शक जाति के हैं जिसने पश्चिमी भारत पर ई० पूृ० पहली और दूसरी शताब्दी में आक्रमण किया था। सुर्ये वंश की मुख्य शाखा में सीसोदिया या चित्तौड़ के चुहिलोत है जो अपने को राम की सन्तान मानते हैं। डी० आर० भण्डारकर का मत है कि ये सागर ब्राह्मणो से सम्बद्ध थे और सम्भवतः मैत्रक थे । अभ्रग्निकुल (जिसमें मि० फार्ब्च ने भूल से सूर्येवंशी राठौड़ों को भी सम्मिलित कर लिया है, आबू पर अग्निकृण्ड से




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