प्रियप्रवास में काव्य, संस्कृति और दर्शन | Priyapravas Me Kavya Sanskriti Aur Darshan

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Priyapravas Me Kavya Sanskriti Aur Darshan by डॉ द्वारिकाप्रसाद सक्सेना - Dr. Dwarika Prasad Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ६३1 प्रस्तुत करने म है। कहीं भी श्रापको कोई तत्छम शब्द देखने को नहीं मिनेमा । सवत्र तद्धव ब्द সঘান सरल एव सुवोध बोलचा् को भाषा वा प्रयोग दिया गया है। इस उपन्यास को पढ़कर डा? प्रियसन इतने प्रसन्न हुए थे कि इस प्ापते इडियत मिविलन्सविस वी परीक्षा वे पादुयक्रम मैं रखवा दिया था। तदुपरान्त हरिप्नोष जी ने प्रघक्षिला पून नामक दूसरा उवन्पास लिखा $ यह भी सामाजिक उपयास है। इसमर तकालीव बिलासी जमीदार १ नग्बरूप का भच्या दिग्दशंन कराया गया है। यहाँ प्रकृति चित्रण भरन्त सबीब एवं मदामाहँक है. तथा चरित्र चित्रण भ श्रादशवादिता नो श्रपनाया गया है। य दानों उपयास पओपन्यासिक कला की दृष्टि से उतत उक्कष्ट नही, याकि यरहिन्दी की ष्ठ मापा का नमुना प्रस्तुत करने के लिए लिखे गये थ । इसी कारण इनम झौपन्यास्तिक कला का ता धवधा আমান হী है. किल्तु फिर भी उपयसस-क्त मे भाषा सम्बन्धी प्रयोग की दृष्टि से इनका महत्वपूर्ण स्थान है । हरिभौय जी न उपन्यासतों व' भ्रतिरिक्त दक्मिणी परिणय तया प्रचुस्त विजय व्यायोग नामक दो झूपक भी लिख। इनम से इविमपी परिणय! के सवाद प्राय ग्रधिक लम्द तथा अस्वाभाविक हैं । यहाँ प्राचीन चादूथ शैली का अपनाया गया है 1 कविता के लिए ब्रजमाषा की प्रयाग दभा है तथा नादूयवला का सुदर रूप दिखाई बनी देता । दूसरा प्रयुज्ध विजय व्यायाग' भारतादु बाबू 4 घनजय व्यायोग के उपरान्त हिंदी वा दूसरा व्यायाग है॥ इसम भागवत क आधार पर शोष्य क पृ प्रयुग्त द्वारा शम्दरासुर क बब की कृया दी गई है / नादुयकला वी दृष्टि से यह ग्रथ भी साधारण हा है। परन्तु रूपक-क्षत्र म श्रपनी विधा के कारण इसकी एवि दहासिक महव है । हरिप्रौष जो ने इतिहास तथा आलाचना क क्षेत्र मे भी पर्याप्त मायं क्यिा। प्रापने पटना विश्वविद्यावय के लिए हिन्दी-साहित्य के इतिहास पर का ध्याम्यान तैयार व्यथ जा पृस्तकाकाररूपम हिन्दी भाषा और साहित्य विक्र क नाम सं प्रङ्ाशित दृष) इख प्रय म हतिद्ासश्रौर भाषा विज्ञान फा ५ सुदर सम्मिशण है तया भाषा के स्वर्पप, उठक उद्गम एवं वितरास ग्रादि पर भ्च्छा प्रकाध्ष डाता गया है। सदस बडी विशपता यह है कि इस इतिहास-्ग्रय मे उदू भाषा के कविया बा भी उल्लख मिलता है. और उद्ूँ को भी हिंद्दी भाषा की ही एक दौलो स्वीकार किया गया है। इस पग्रथ के प्रतिरिक्त भ्ापन रसकलस की भूमिका लिखी, जो आलालना-साहित्य




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