गांधी गौरव | Gandhi - Gaurav

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Gandhi - Gaurav by गो. चन्द्र - Gau. Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समभ में--जो श्रा सका श्रापके सम्मुख है । झाप स्वय. देख ले वद्द वया है । हृदय में जो उद्वार उठा निकल पड़ा । घहदी श्राप की सेट है। सुदामा के ये तुच्छ तरडुल उस के अनुसाग-झच्तत हैं । प्रेमपूवक श्रद्य कीजिये । अन्त में मेँ अपने मित्र बाबू मोदहनलाल वर्मा बेरिस्टर के प्रति झ्रपनी हार्दिक छृतज्ञता प्रकट करता हूँ जिन की सद्दायता से मुभ्हे पुस्तक के खुविधापूर्वक प्रकाशित कराने का अवसर प्राप्त हुआ । में उन सज़जनोा का भी अत्यन्त श्राभारी हूँ जिनकी श्रसूस्य सम्मतियों द्वारा इस पुस्तक के संशोधनादि में सहायता मिली । उन में मेरे मित्र बावू सुन्नीलाल चकील शर चावू मिश्नीलाल बी० ए० एल० एल० बी० के नाम विशेष उल्लेख योग्य हैं । विद्यार्थियों की खुविधा के लिप परिशिष्ट सें छोटा सा शब्दकोश भी दे दिया है । झाशा हे यह कार्य पाठकों को रुखि- कर होगा । हरीनगरा पो० श्ा० सासनी प्रान्त झलीगढ़ । गोद चन्द्र देवोत्थान १९७६ वि०




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