भारतीय राजनीति का विकास संविधान | Bhartiya Rajneeti Ka Vikash Aur Sanvidhan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
510
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय राजनीति का उत्कपें रौर अपक्षं १६
इसके प्रभाण विखरे षडे हँ । ऋग्वेद (७३४४११) मे कहा गया है कि 'राजा राष्ट्रान
मम् पेयो नदीनामनुत्तमस्मै क्षत्र विस्वायु' राजा विभिन षन्योकेलोगोकौ राष्ट्र
भें वंके एकत्रित करता है जपे समुद्र अनेक अलगेन्श्नलग नदियों को ) यहा राजा और
राष्ट्र शब्दो का उल्लेख मिलता है ।
राज्य का जन्म--अथवंवेद (८1१०) मे उल्तेख मिनता है कि “विराइवा
इदमम्--” यह् जगत राजा रहित था परन्तु ज॑सा कि ऐनरेय श्राह्मग (श१४) में
बताया गया है कि देवो और अझुरो में युद्ध हुआ, देव प्रानित हुए, उन्होंने हार से
डरकर निर्णय किया--/राजानम करदामहै” हम राओ चाहिये क्योकि हमं
“अराजतया' अर्थात् राजा न होने के कारण हार गय हैं। इस प्रकार राज्य
(राज्य हीवता) से उब कर झाय जन उठे और '“गाईपत्व ल्न्यक्रामत', उन्होंने अपने
परिवार को एक प्रधान के आधीन सग्रठित क्या जो - 'गृहेमेघी गृपतिभभेवति' घर
का ठीक प्रवत्ध करने लगा और घर का स्वामी बता । सगठन झागे बठा और परि-
घार के मुखिया जो देव कहलाय वे समय समय पर सभा करते लगे--'पन्त्यस्य देवा
देवहूति प्रियो देवाना मवाति य एव बेद ।' (जो संगठन) के रहस्यों को जानता हैँ
बहू देवों (कुल-मायको) को भाहूत करता अर्थात् बुलाकर इकट्ठा करता है और
उनसे मित्रता करता है। इससे आगे चलकर “तमाया न्यक्रामत् समा अयाद् ग्राम--
सभा बनी, मभा सम्योभवति' सभा म सम्य (सदस्य) बने । सभा का लघु रूप
समिति बना-- समितो न्यक्रामत । भ्रथवें० ६1१०)१०/ | यहा यह बात ध्याने मे
रखने योग्य है कि इस प्रस्य म मत्रो म वही राजा शब्द नहीं झाया हैं ग्रत समिति
का ক্সঘ राजा की समिति से नही वरन् ग्राम-समिति या परचायत्त है जो राजा से
स्वतव्र है । ससिति मे जो मत्रणा देने योग्य हुआ वह सठो बेबा -- मत्रणाना सजणीयों
भवति । १२
ऋणग्वेद मे भी समिति का उल्लेख मिलता है--“समानोमन्त्र समिति:
समाती' मिलकर सत्रणा हो मितकर समिति हो (ऋ० १०१६१॥३) । ऋखेद
(६।६२।६) म राजा के प्रमिति म जाने भ उल्लेख मिलता है । अ्रथववेद (३ 1४1७)
मे राजकतु शब्द आया है जिसका भ्रय॑ं है राजा को बनाने वाने अर्थात् मतदाता या
सामरिक । राजा का चुनाव समिति करती थी । परवर्ती काल भें रामायण व महा-
आरत में राजा के निर्वाचक को “राजकर्तार' कहा गया है 1
चैंदिक काल के पश्चात् मी जेता से द्वापर युग तक राजा का निवचित होवा
रहा । कही यह निर्वाचन वास्तविक रहा कही केवल परम्परा को निवाहने के लिए
केवल औपचारिक ) राम के राजतिलक की स्वीकृति दशरथ को अयोध्या के पौर-
जानपद से लेनी पडी थी । राजा दशरथ की मृत्यु पर नय राजा के “चुनाव के लिए पौर-
जानपद कौ बैठक हुई, इसो पौरजानयद ने राम के वन चजे जाने वर मरत को
राजक्ाज सभालने का आदेश दिया था (साम्रायण, अ्रयोध्या क्ाड ६७४२, १1१३३ )
भद्दाभारत मे भी इस प्रकार के अर्संग आयें हैं जहा प्रजा ने देवापि को कुष्ट-पीडित
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