भारत का आर्थिक विकास | Bharat Ka Arthik Vikas

Bharat Ka Arthik Vikas by आर. सी. अग्रवाल - R. C. Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ ९ ) महासागर तथा दक्षिणपूर्वं व दक्षिण-पश्चिम मे मरा बंगाल कौ खादी एवं অহন सागररके अनि से भारत को अनेक प्राकृतिक वन्दरगाह प्राप्त हो गए है, जिनसे विदेशी व्यापार मे अत्यधिक सहायता मिकती है । पूर्वी तथा पश्चिमो माग से भारत विश्व के समी देशो से समुद्रो यातायात कौ व्यवस्था कर सकता है । भारत की स्थिति ८०४“ अक्षान्च से ३७०६८ अक्षाश तक होने के कारण यहां अनैक प्रकार को जलवायु मिलती है । जिसक्टे कारण यहाँ सभी प्रकार की फसलें उत्पन्न को जा सकती है । भौगोलिक खंड भारत को मुख्यत चार भौगोलिक खण्डो में बाँठा जाता है-- १. हिमालय का पर्वतोय क्षेत्र--इस क्षेत्र मे भारत के उत्तरी भाग में स्थित वह पर्वतीय प्रदेश सम्मिलित है जो उत्तर में पामीर के पठार से लेकर यूव॑ में आसाम की सीमा तक फीता हुआ है । हिमालय पर्वत माला को तीन श्रेणियों मे विभक्त किया जा सकता है; मुख्य हिमालय, हिमालय की उत्तरी पश्चिमी शाखा तथा हिमालय की दक्षिण-पूर्वी शाखा । यह विभाजन पर्बत माजा की विभिन्न क्षेत्रों की ऊंचाई के आधार पर किया गया है । विश्व की सवसे ऊँची पर्बत-मालाएँ जेसे एवरेस्ट, कंचनचंगा, धवलगिरी आंदि मुख्य हिमालय के अन्तर्गत ही आती है। मुख्य हिमालय से गगा, ब्रह्मपुत्र, सिधु तथा अनेक बडी नदियाँ विकलती है, जो इस प्रदेश के दक्षिण में स्थित দানা को जल प्रदान करती है । भारत के आर्थिक विकास मे हिमालय का सर्वाधिक योगदान रहा है । इमे निकलने वाली नदियां स्थायी (एलल्णा12]) है वयोकि हिमालय पर जमी वफ हिम-नदियो के रूप मे पिवल- पिघलकर नदियों मे निरन्तर पानी देती रहती है । इससे वपं-मर गंगा-सिधु के मैदानो मे छृषि-ैतु पर्याप्त অল मिलता रहता है । यदी नदी, उत्तरी भारत के प्रदेशो मे पर्याप्त वर्षा होने का कारण भी हिमालय की स्थिति ही है, क्योकि ये पर्वत-मालाएँ वर्षा की हवाओ को उत्तर की ओर जाने से रोकती है। उत्तरी भारत के प्रदेशों मुख्यतः पजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार व बगाल के हरे-भरे, खेतों की रक्षा भी हिमालय एक प्रहरो कौ भांति करता है वथोकि हिमालय एक अभेद्य दीवार की भांति उत्तर की सूखी एवे टण्ठी हवाओ फो आने से रोकता है । हिमालय कै जंगलो मे भूल्यवान लकड़ी व अन्य उपयोगौ वेस्तुएं उपलब्ध होती है । हिंभालय के निचले पहाडी ढाली पर चाय की खेती होती है जिससे भारत को पर्याप्त विदेशी विनिमय प्राप्त होता है। सर जोशिया स्टेप ने ठीक ही कहा है कि भारतीय कृषि (विशेष स्पे उत्तरौ प्रदेशों मे) की प्रगति का मुख्य उत्तरदायित्व हिमालय पर ही है ४ २. गंगा और सिन्धु का मंदान-- हिमालय की पवंतमालाभ से दक्षिण में स्थित, विश्व के सबसे मधिक उपजाऊ मैदानी में एक, गंगा-सिन्‍्धु का मैंदान है । पाकिस्तान के अतग हो जाने के बाद इस मैदान की लम्बाई लगभग १५०० भील रह गई है तथा चौदाई लगभग २०० मील है । इस मैदान की मिट्टी दोमट मिट्टी कहलाती है, जो अत्यविक उपजाऊ है और गगा, यमुना, गडक, घाघरा, कोसी तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के कारण इस मैदान में कृषि के लिए पर्याप्त जल प्राप्त हो जाता है। अत्यन्त विद्ञाल होने के कारण इस मैदान में विभिन्न प्रकार की जलवायु पाई जाती है, इसीलिए गेहूँ, चाबल, गन्ना, जूट, चाय और विविध प्रकार की फसले पैदा होती है। समतल होने के कारण इस मैदान मे रेला, नहरो व सडको का जाल विदा हुआ है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही यह्‌ मैदान कृषि, दस्तकारियो तथा घनौ जनसंख्या के लिए प्रसिद्ध रहा है । इतिहास के जानकार सिन्धु-घाटी को सभ्यता का उदाहरण इती मंदान की पुरातन सभ्यता के रूप मे प्रस्तुत करते है । १६४७ के बाद देश का विभाजन हो जाने के कारण सिन्‍्ध तथा उसकी सहायक नदियाँ पाकिस्तान से चली गई और इसलिए इस मैदान के महत्व पर काफी प्रभाव पड़ा । ३ दक्षिण का पठार--गगा-सिन्ध के मैदान से दक्षिण मे यह पठार या श्रायद्वीप स्थित है । इसे प्रायद्वीपीय पठार भी कहा जाता है। समुद्र के किनारे-कितारे यह दक्षिण तक चला गया है । 1. ऽ 1091012. 91870--100121 09০80885,




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