मानव की कहानी | Manav Ki Kahani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ प्ागएेतिहासिक मानव [वप्राः एस-प्रााछशत नरप मानव হা মান লাথি सृष्टि का भ्रादि रूप सम्मवतः एक वर्शातातोत, परिव्याप्त ज्वलस्त वायुभण्डल के समान था । मानों वह महापुझ्जिमूत ज्योति थी। इस ज्योति में पे प्रनेफ़ नक्षत्रणण उदमूत के 1 एक नक्षत्र से, जो हमारा सूर्य है, हमारी यह पृथ्वी তল हुई । यह पृथ्वी सूयं का हो एक खण्ड थी, प्रतएव पह घघरूती हुई ग्राग का एक विशाल गोला यथी। करोड़ो वर्षों तक यह पृथ्वी निष्प्राण शून्य सी पड़ी रही । अनेक प्रकार की घटनायें, झनेक प्रकार फे एिवतेनं दष पर्‌ हुए 1 घयै. शनैः यह भाग का गोला ठंडा हुमा, इस पर समुद्र वने, भीरो प्रौर नदिया वनो, पहाड़ एन ऊबेर मूमि वी ॥ किस्तु श्रव तक पृथ्वी पर इन चटनाप्रो का कोई द्रष्टा नहीं था । फिर प्राज से करोड़ो वर्ष पहले--पसम्मवतः, ६०-७० करोड़ वर्ण पहिले क्सी युग मे किसी दिन इन प्रप्राण घटनाग्रो की पृष्ठमूमि पर जडभूत হয ঈ से प्राण का प्राविर्माव हुआ । ये प्राण स्वेप्रधम अतिसूक्ष्म जीव कोपों में एव प्रति साधारण जौवो मे प्रस्ट हुए । विकासवाद के सिद्धान्त के भ्रनुप्तार उपरोक्त सरलतम जीव कोषो में से, अस्थिहीन, रीढहीन जोयो मे से पहिले रोदयुरत एव अस्थियुक्त मत्स्यो का विकास हुश्ल, फिर मेढक', टोडपोल, सामु- দি बिच्छू जै७ अर्ध-जलचर प्राषियो का, फिर साप, श्रजगर, मगर जसे सनोगपप्राणियो काश्रौर फिर इन्ही रे एक सरफ तो हवा में उडते वाले पक्षियों वा और दूसरी तरफ गाय-चैंस, घोडा, कुत्ता, शेर, लगूर वानर, झादि सस्‍्तवधार। प्राणियों का । स्ततघारी प्राणियों की उि्ची एक जाति में से ही मातर करिति हरा! मानव वे निशटतन তুল भ्राजकल सेज्ञानिक विशेषज्ञो मे यह भत प्राय, मान्यै कि मनुष्य भा निकटतम पूर्थज जमीन पर चलने वाला दिना पृषु वाला बन्दरसम कोई




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