शत दल | Shat Dal

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Shat Dal by कमला देवी - Kamala Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६) बान्न क्रिडा के अत मे, पाल्य श्रौर कोमायै अवस्था के सधिस्थज्न पर पुनहले प्रमात मे लुमावने मोदक मोह ने मानव फा पल्ला पका | छोटे से मानव ने जननी फे हाये चमकीली मुद्रा देख, ज्र ज्ेने फे लिये ललचीनली मुद्रा से छुकोमल करों को फैज्ञाया। जननी ने मुलक कर एक मुद्रा हाथ पर रखते हुए एक प्यार की मुद्रा उसके भोले प्यारे से सुख पर रखदी। मुद्रा को उसने छिपा कर रखा। रखते ही उसे गुदगुदी सी हुईं। वद्द किलक कर खिला, और हसा। उसी क्षण मोह में प्राणों में घर छिया। वाल्य सुल्म सरलता ने उसे जानने मीन दिया छि उसके ह॒दय में शत्रु ने ढेरे डाल्न दिये दै। बह जीवन भर उसे विनिप्ट करता रहेगा, परन्तु धह उससे विजय न हो सकेगा। मोदने नदं हदय में धीरे धीरे मोरचा बदी आरम्म की । लोभ को जगाया | तृष्णा को बढाया और कामनाओं को सचेत किया। इन सत्र ने मिल कर, अपने अपने काये कुशलता पूर्वक आरम्म श्यि। देखते देखते उसका नदा हृदय विस्तृन हो चला । कामनायें अमित होकर मतबाली हो उठी | क्षण २ में उनको प्यास बढने लगी | बह मानव को विकल सा रखने लगी | श्रतिपल उनकी पूर्ति की घुन में बह व्यप् रहने लगा । ठष्णा की ठृष्णा तो एक क्षण को भी न बुमती, प्रत्युप बढती ही जाती थी । मानव पिप्श तव्य याः परेशान धा । सारी शक्ति से ठृप्णा की पूर्ति मे तत्पर रहता। बह सोचता रद्दता




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