भागवत दर्शन खंड 65 | Bhagwat Darshan Khand 65

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Bhagwat Darshan Khand 65 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका হক किसी को दाल, कोई'माँस का प्रेमी, तो किसी को स्वभाव से ही उससे अत्यन्त घृशा है।कोई फलन्न से ही पेट भग्ना चाहता दे कोई दूध पीकर द्वी रहना चाहता है, वसो को भी यही बात है सेनिकों के वल्न और होंगे, शासकों के और होंगे । कृपकों के दूसरे प्रकार के होंगे कल कारखानों में काम करने वाल श्रमिकों के और तरह के, स्त्रियों के भिन्न होंगे, फिर आप भोजन चस्त्र में समानता कैसे कर सके गे ¶ हमने काराबास में देखा है । सब चन्दियों को एकसा भोजन वस्त्र देने नियम ই। বাল तोलकर सधको समान भोजन दिया जाता है, एकसे वचन दिये जाते ३, किन्तु वदँ मी तिकडम चलती है । वहुत से चोगी चोरों से 'बगिया से मूली साग भाजी ले आते बहुत से चोरी से इंलुश्ा पूड़ी बनाते हैं,' बहुत से प्रहरियों को पैसे देकर चुपके से “मिठाई मंगा लेते हैं। भोजन में, वस्त्र में, काम में समानताका सिद्धान्त संवीकार करनेपर भी प्रत्यक्षसे असमानता है. । अच्छा एक वात और भी है। जेज्ञमे ७० ८० प्रतिशत ऐसे न्दी ' होते'हैं जिन्हें घरपर दोनों समय तो क्या एक समय भी पेट भरकर रोटो नहीं मिलती। किसी प्रकार रूखी: सूखी रोटी सत्तूं' या मोटा भात खाकर निबोद्द करते हैं। यहाँ जेलमें दोनों ससय चन्दे दाल माव 'रोटी, साग भरपेट সিরা है, फिर भी वे इस जेलमें स्वेच्छा' से एक'क्षण भी नहीं रहना चाहते, ये तो अपने घरपर्र स्वाधीन दोंकर एक समय आधे पेट ही रहनों चोहते हैं | ये साम्यवाद वॉले गाँवों के कारबास 'ही ता बनाना चाषे ह ! गाँवमें सब मिलकर खेती करे', सब खेनों पर श्रम फरे, किसी' की व्यक्तिगत सम्पत्ति स हो। किन्तु क्या ऐसा संभर्व है ? संभव हो भी तो क्‍या इससे सानव सुखो वो सकता है? कदापि नही, पणी स्वतंत्र रहना- वादता दू । कतो खत्ता , सबसे आंधिक प्रिय है | बांदे उसके पास एक ही बोघां खेत हो,




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