संयुक्त मोर्चा | Sayukta Morcha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फाहिज्म प्रयमतः इस वगरण सत्ता में आने में सफल हुआ, ययोंकि सामा-
जिक-जनवादी नेताओं द्वारा अपनायी गयी पूंजीपतियों के साथ वर्ग सहयोग
की नीति के कारण पूंजीपति वर्ग के हमले के समय मजदूर वर्ग विमागित,
राजनीतिक और सांगठनिक दृष्टि से निहत्या सावित हुमा। और दूसरी ओर
फम्युनिस्ट पार्टियां इतनी दाक्तिशालो महों थीं कि सामाजिक-जनवादियों से
अलग और उनका विरोध करतो हुई जनता को आन्दोलित कर सकती और
उसे फासिज्म के खिलाफ निर्णायक संघर्ष में नेतृत्व प्रदात बार सकती ।
मौर निश्चय ही उन लासों सामाजिक-जनवादी कार्यकर्ताओं को, जो अब
अपने फम्युनिस्ट भाइयों के साप-साथ फासिस्ट वर्वरता कौ विभीपिक्रा का
अनुभव फर रहे हैं, इस बात पर गंभीरता से सोचना चाहिए: अगर १६१८
में जबकि जमनी और ऑस्ट्रियां में क्रान्ति फूट पड़ी थी, ऑस्ट्रियाई और जर्मन
सर्वेहारा ने ऑस्ट्रिया में जौढो बॉपर, फ्रेडरिस एडलर और काले रेनर फे
तथा जमंनी में एबर्ट और शीडमान्न के सामाजिक-जनवादी नेतृत्व का अनुसरण
न किया होता, बल्कि रूमी बोल्शेविकों के पथ का, लेनिन और स्तालिन के
पथ का, अनुप्तरण किया होता, तो आज ऑस्ट्रिया या जमंदी में, इटलो या
हँगेरी में, पोलेड या बलकान में फासिज्म नहीं होता । बहुत पहले ही योरप
में पूजीपति वर्ग का नहों, बल्कि मजदूर वर्ग का प्रभुत्व कायम हो गया होता ।
उदाहरण के लिए, ऑ्ि्ट्रियाई सामाजिक-जनवादी पार्टी को लीजिए ।
१६१४ की क्रान्ति ने इसे अत्यंत ऊंचाई पर पहुंचा दिया। सत्ता इसके हाभ में
थी, सेना में और राज्य यंत्र में मजबूत स्थितियां इसके हाथ में थी) इन
स्थितियों का सहारा लेकर वह फासिज्म को पनपते हो नष्ठ कर दे सकती थी ।
मगर वह बिना कोई प्रतिरोध किये मजदूर वर्म की एक के बाद दूसरी स्थिति
को उसके हवाले करती गयी । उससे पूंजीपति वर्ग को अपनी शक्ति को सुदृढ़
करने, संविधान को रद कर देने, राज्य यंत्र, सेना ओर पुलिस दल से सामा-
जिक-जनवादी कार्यकर्ताओं का सफाया कर देने तथा शस्त्रागार मजदूरों से छीन
लेने का मौका दिया । उसने फासिस्ट दस्युओं को बेघड़क सामाजिक-जनवादी
मजदूरों की हत्या करने दी और हुटेनवर्य संधि (तथाकथित माक्सवाद-विरोधी
भोचें की सरकार कायम करने के लिए १६२२ में की गयी संधि--अनु.) की
शर्तों को स्वीकार कर लिया जिसने फाप्तिस्ट तत्वों के कारखानों में प्रवेश के
लिए दरवाजे खोल दिये । साथ ही सामाजिक-जनवादी नेताओं ने उस लिंज
कार्यक्रम (१६२६ में स्वीकृष--अनु.) के जरिये मजदूरों को कासा दिया
जिसमें पूंजीपति वर्ग के खिलाफ शस्त्र शक्ति (फोज) के प्रयोग और स्वहारा
अधिनायकत्व की संभावना शामिल की गयी थी तथा उन्हें यह आश्वासन दिया
गया था कि अगर शासक वर्ग मजदूर वर्ग के खिलाफ बल-प्रयोग करता है तो
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