भागवत दर्शन खंड 74 | Bhagwat Darshan Khand 74

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Bhagwat Darshan Khand  74  by श्री प्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) पीठाधीश्वर जगदुगुरु शंकराचार्य जी भी पा गये थे। शोभा यात्रा निकली, महती सभा हुईं पत्रक्र सम्मेलन हुआ और प्रसाद पाकर योह देहली को चलने को उदयत हुए स्यो हौ हमारे स्वयं सेवकों ने मुझे सूचना दी--“महाराज जी, भाप देहली न লা? मैंते कहा--“क्यों, क्या बात है ?” उन्होंने कहा--देहली वालों मे श्रभी-अभो सूचना भेजी है, 'कि यहाँ वायुयान स्थल पर पूरो तंयारियाँ हैं, भ्रह्मचारीजी के आते ही उन्हें तुरन्त गिरफ्तार कर लिया जायगा ।” मैने हकर कहा-- तो यह्‌ कौन सी बात है, सरकार जहाँ चाहे वहीं गिरफ्तार कर सकती है। “बकरे की माँ कब तक कुशल मता सकती है 1 उन्दने कहा- नहों प्राप देहली न जाकर जयपुर उतयं जायें ओर वही से मीटर द्वारा वृन्दावन चले जाय॑ ।” मेने कहा--“वायुयान की टिक़ठें तो देहली की हैं ?” वे बोले--/कोई चिन्ता की बात नहीं, आप इन्हीं टिकटों से जयपुर उतर जाये, तो कोई मना थोड़े हो करेगा और फिर हम “टिकट बदज़वाने का भी प्रयत्न करेंगे।” हमारे स्वयंसेवकों में भ्रत्यन्त उत्साह था! वे सब कुछ करने को उद्यत थे। कुछ तो हमें लेकर वायुयान स्थल पर गये । कुछ टिकटों की छुनांबुनों में लग गये । वायुयान के छूटने के कुछ ही समय पूर्व प्रान्त प्रचारक मेरे पास पहुँचे भोर बोले-- महाराज ! टिकर्टे जयपुर की वन गयीं | हमने जयपुर सूचना भी दे दो | जयपुर में लोग भापको उतार लेंगे । वे सब प्रबन्ध करेंगे 1 = & = सबसे स्नेहमरित हृदय से विदा लेकर, सबके स्नेह प्रमुरांग




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