ऊहापोह | Uhapoh

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Uhapoh by शान्तिभिक्षु शास्त्री - Shantibhikshu Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आगमप्रामाण्य फा विकास उपदेश ग्रहण मे मसम्थं उन अवर (दीन) लोगों ने इस ग्रंथ ( 5 निघः्द ) ' वेद और वेदागों का सग्रह किया जिनसे स्पष्टतया ज्ञान हो सके । जो वात यास्क ने कही हं उसी से मिलती-नुलती वात मग्णञ्ञ्यसुत्त (द निकाय) में आयी ह: “वे (ब्राह्‌.मण) जगल में पर्णकुटी वना कर वहीं ध्यान व थे।.. .«उनमें से कितने ध्यान न पुरा कर सकने के कारण ग्राम या निगम के मकर ग्रन्य बनाते हए रहने ल्गे 1. . . उस समय बहु नीच समझा जाता किन्तु माज वहु श्रेष्ठ समन्ना जाता है 7” यास्क मीर बुद्ध कै इन वचनो कौ तुलना करं तो उसका निष्कथं यों होगा-- यास्क बुद्ध (१) धमं फा साक्षात्‌ करने वाके ऋपि ! (१) ध्यान करने वाले ब्राहुमण । (२) धर्म का साक्षात्‌ न करने वाले लोग, (२) ध्याने पूरा न करने वाले নান और उनका ऋषियों से उपदेश ठेना 1 (३) घर्म का साक्षात्‌ न फरने वालों के (३) घ्यान स पुरा करने वालों द्वारा 7 हारा ग्रन्य-रचना । रचना । (४) ১ (४) ग्रन्य-रचना के कार्य की पूर्द युर निन्दा । (५) >८ (५) पग्रन्य-रचना के कार्य की वुद्धयुग प्रशसा । (६) ग्रन्य-रचना का उदक्य था स्पष्टतया (६) ১ ज्ञान प्राप्त का साधन प्रस्तुत करना । इस तुलना से साफ जान पडता हैँ कि याक्क मौर चुद्ध ने एकही बात हूँ । यास्क के विचार से ऋषियों ने ही मन्त्रों का उपदेश दिया और उन्हीं की परः में चलकर वेदों और वेदाग्रो का निर्माण हुआ। बौद्ध परम्परा भी यास्‍स्क की फा हो समर्यन करती हूँ। बुद्ध और उनके पू्वंवर्तो यास्क्त को यही पता था ऋषियों ने ही मन्त्रों की रचना की है। भले हो ऋषियों ने मन्नों की रचना फौ हो भके हौ यास्क जैसे कु वृद्धिमान्‌ इस वात को स्वीकार करते रहै हँ पर जनिनि भौर वादर क मत इस चात में सर्वया भिन्न है । जैमिनि फे विचार से वेद किसी ने नहीं बनाये । জি अपनी बात का त्तमर्यन करने के लिए सारी परम्परा को ही उलट दिया। जे फे समय में लोग यह मानते थे कि बेद के रचयिता ऋषि ही हू। पूर्वपक्ष के रूप में उ इसका यो उल्लेख किया हूँ -- वेदाइचेके सचन्निकर्ष पुरुषार्या। (पू० मी० ११1१७) सूत्र का भावायें--वाल्मीकीर्या रामायण शब्द में वाल्मीकोय फा अर्य हूं बाल फी वनायी हुई (रामायण) ! इमौ तरह वैदिक ग्रथों के साथ काण्व, शौनकौय, ८ मीय, काठक, तंत्तिरौय मादि शब्द जुडे दिपायौ पडते हं जिनका सर्य हं कण्व, द कोयुम, कठ, बोर तित्तरि फो कृति । वंदिक ग्रंथों के साथ इस तरह के अ




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