अंतर के पट खोल | Antar Ke Pat Khol

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Antar Ke Pat Khol by महेंद्र मुनि - Mahendra Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निराशापूरणं दृष्टिकोण : जौवन के लिए घातक | € यह जिंदगी वेसे तो बहुत ही खूबसूरत है। पर इसे जरा ठीक से समझने की जरूरत है ॥। अगर नही समझे तो यह है शैतान का मंदिर-- और समझ गए तो यही वस भगवान्‌ की मूरत है ॥ और भी इस बारे में कहा जा सकत। है-- आप हर मंजिल को मुश्किल समझते हैं । हम हर मुश्किल कौ मंजिल समझते हैं ॥ बडा फकं है आपके भौर हमारे नजरिये मे-- आप दिल को दर्दे और हम दर्द को दिल समझते हैं ॥ प्रिय श्रोताओं ! मुझे अपने बचपन की एक घटना याद आती है-- मैं अपने बाल-सलाओ के साथ एक नदी के किनारे खेल रहा था | हम बच्चे अपने पेरों पर नम रेत के घर बनाते थे, उसे बार-ब्रार सवारते थे, लहरें आती और उनको तोडकर चली जाती । तब हम रोते नही थे, पर लहरो के लौटते ही फिर से घर बनाने मे व्यस्त हो जाते थे | जो निराशा के भंवर मे फंसे हुए हैं में उन्हीं से कहना चाहुँगा कि समुद्र मे कितने तूफान आते हैं, न जाने कितनी नौकाए डूब,जाती हैं, लेकिन क्या मनुष्य ने यात्रा करना छोड दिया है ? मनुष्य हर बार दुगुने उत्साह के साथ लहरों का सामना करने के लिए उतर पडता है। चिडियों को देखिए - हमारे आंगन में आती हैं और तिनके लेकर कंसा छोटा-सा घर बनाना शुद्ट करती है। तिनका अनेक बार उसकी चोंच से गिरता है लेकिन वह न हिम्मत हारती है और न चीखती है, अपितु उसी चहचहाट के साथ तिनके को उठाती है ओर वह्‌ घौसला हम सबके लिए एक उपदेश का स्वर है जिसे हमे अपनी आत्मा से बनाना चाहिए | आशा का दृष्टिकोण तो हम सागर से भी सीख सकते हैं। आसमान से न जाने कितनी आग बरसती है । सागर उसे सहन कर लेता है तभी तो मोतियो को जन्म देने मे सक्षम होता है । ये पक्तियां सहज ही घेरो जुबान पर मचल रही हैं-- बोल मनुज ! क्यों विवश वना है, क्यो आसू टपकाये खारे ? काले बादल घिर आये तो कया सूरज भी पथ बदलेगा ? श्यायो काटो झुण्ड सामने, क्या केशरी बच निकलेगा ?




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