अंतर के पट खोल | Antar Ke Pat Khol
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निराशापूरणं दृष्टिकोण : जौवन के लिए घातक | €
यह जिंदगी वेसे तो बहुत ही खूबसूरत है।
पर इसे जरा ठीक से समझने की जरूरत है ॥।
अगर नही समझे तो यह है शैतान का मंदिर--
और समझ गए तो यही वस भगवान् की मूरत है ॥
और भी इस बारे में कहा जा सकत। है--
आप हर मंजिल को मुश्किल समझते हैं ।
हम हर मुश्किल कौ मंजिल समझते हैं ॥
बडा फकं है आपके भौर हमारे नजरिये मे--
आप दिल को दर्दे और हम दर्द को दिल समझते हैं ॥
प्रिय श्रोताओं ! मुझे अपने बचपन की एक घटना याद आती है--
मैं अपने बाल-सलाओ के साथ एक नदी के किनारे खेल रहा था | हम बच्चे
अपने पेरों पर नम रेत के घर बनाते थे, उसे बार-ब्रार सवारते थे, लहरें
आती और उनको तोडकर चली जाती । तब हम रोते नही थे, पर लहरो
के लौटते ही फिर से घर बनाने मे व्यस्त हो जाते थे |
जो निराशा के भंवर मे फंसे हुए हैं में उन्हीं से कहना चाहुँगा कि
समुद्र मे कितने तूफान आते हैं, न जाने कितनी नौकाए डूब,जाती हैं, लेकिन
क्या मनुष्य ने यात्रा करना छोड दिया है ? मनुष्य हर बार दुगुने उत्साह के
साथ लहरों का सामना करने के लिए उतर पडता है। चिडियों को देखिए
- हमारे आंगन में आती हैं और तिनके लेकर कंसा छोटा-सा घर बनाना
शुद्ट करती है। तिनका अनेक बार उसकी चोंच से गिरता है लेकिन वह न
हिम्मत हारती है और न चीखती है, अपितु उसी चहचहाट के साथ तिनके
को उठाती है ओर वह् घौसला हम सबके लिए एक उपदेश का स्वर है
जिसे हमे अपनी आत्मा से बनाना चाहिए |
आशा का दृष्टिकोण तो हम सागर से भी सीख सकते हैं। आसमान
से न जाने कितनी आग बरसती है । सागर उसे सहन कर लेता है तभी तो
मोतियो को जन्म देने मे सक्षम होता है ।
ये पक्तियां सहज ही घेरो जुबान पर मचल रही हैं--
बोल मनुज ! क्यों विवश वना है, क्यो आसू टपकाये खारे ?
काले बादल घिर आये तो कया सूरज भी पथ बदलेगा ?
श्यायो काटो झुण्ड सामने, क्या केशरी बच निकलेगा ?
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