मेरे समकालीन | Mere Samkalin
श्रेणी : राजनीति / Politics, समकालीन / Contemporary
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
662
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)~ १५ ~
मैने उन्हे सात्वना देने, रिकाने और वातचीत करानेकी अनेक कोशिशें
की । वहत समयके वाद मुभे कुछ सफलता मिली । देवी जरा हंसी ।
मुझे हिम्मत हुई और में बोला, आप रो नही सकती ! श्राप रोग्रोगी तो
सव लोग रोवेगे ¦ मोना (वडी लडकी) को वडी मूदिकलसे चुपकी रखा
ह ! देवी (छोटी लडकी) की हालत तो श्राप जानती ही है । सुजाता
(पृत्रवधू) फूट-फूटकर रोती थी, सो बडे प्रयाससे शात हुई है। आप
दया रखियेगा। आपसे श्रव बहुत काम लेना हैं।”
“वीरागनाने दृढतापूर्वक जवाब दिया--- में नही रोऊंगी। मुझे रोना
भ्राता ही नही 1
“मे इसका ममं सम का, मुम सतोप हरा । रोनेसे दु खका भार हत्का
हो जाता ह । इस विधवा वहनको तो भार हल्का नही करना था, उठाना
घा! फिर रोती कैसे ! अरव में कैसे कह सकता हु--- लो चलो, हम
भाई-वहन पेटभर रो ले और दुख कम कर लें।”
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“बासती देवीने अ्रवतक किसी के देखते, आसूकी एक वृदं तक नही
गिराई है। फिर भी उनके चेहरे पर तेज तो श्रा ही नही रहा है । उनकी
भुखाकृति ऐसी हो गई है कि मानो भारी वीमारीसे उठी हो | यह हालत
देखकर मैने उनसे निवेदन किया कि थोडा समय वाहर निकलकर हवा
खाने चलिए । मेरे साथ मोटरमे तो वैठी, पर बोलने क्यों लगी। मेने
कितनी ही वाते चलाई--वे सुनती रही, पर खुद उसमें वरायनाम शरीक
हुईं। हवा खोरीकी तो, पर पछताई । सारी रात नींद न श्राई। जो
बात मेरे पतिको अ्रतिशय प्रिय थी वह आज इस अभागिनीने की । यह
क्या शोक है 1“ एसे चिचारोमे रात हो गई।
১ >< ><
“दैधव्य प्यारा लगता है, फिर भी असह्य मालूम होता हं । सुधन्वा
खौलते हुए तेलके कडाहमें भटकता था झौर मुभ जैसे दूर रहकर देखनेवाले
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