मेरे समकालीन | Mere Samkalin

Mere Samkalin by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ १५ ~ मैने उन्हे सात्वना देने, रिकाने और वातचीत करानेकी अनेक कोशिशें की । वहत समयके वाद मुभे कुछ सफलता मिली । देवी जरा हंसी । मुझे हिम्मत हुई और में बोला, आप रो नही सकती ! श्राप रोग्रोगी तो सव लोग रोवेगे ¦ मोना (वडी लडकी) को वडी मूदिकलसे चुपकी रखा ह ! देवी (छोटी लडकी) की हालत तो श्राप जानती ही है । सुजाता (पृत्रवधू) फूट-फूटकर रोती थी, सो बडे प्रयाससे शात हुई है। आप दया रखियेगा। आपसे श्रव बहुत काम लेना हैं।” “वीरागनाने दृढतापूर्वक जवाब दिया--- में नही रोऊंगी। मुझे रोना भ्राता ही नही 1 “मे इसका ममं सम का, मुम सतोप हरा । रोनेसे दु खका भार हत्का हो जाता ह । इस विधवा वहनको तो भार हल्का नही करना था, उठाना घा! फिर रोती कैसे ! अरव में कैसे कह सकता हु--- लो चलो, हम भाई-वहन पेटभर रो ले और दुख कम कर लें।” >< >< >< “बासती देवीने अ्रवतक किसी के देखते, आसूकी एक वृदं तक नही गिराई है। फिर भी उनके चेहरे पर तेज तो श्रा ही नही रहा है । उनकी भुखाकृति ऐसी हो गई है कि मानो भारी वीमारीसे उठी हो | यह हालत देखकर मैने उनसे निवेदन किया कि थोडा समय वाहर निकलकर हवा खाने चलिए । मेरे साथ मोटरमे तो वैठी, पर बोलने क्यों लगी। मेने कितनी ही वाते चलाई--वे सुनती रही, पर खुद उसमें वरायनाम शरीक हुईं। हवा खोरीकी तो, पर पछताई । सारी रात नींद न श्राई। जो बात मेरे पतिको अ्रतिशय प्रिय थी वह आज इस अभागिनीने की । यह क्या शोक है 1“ एसे चिचारोमे रात हो गई। ১ >< >< “दैधव्य प्यारा लगता है, फिर भी असह्य मालूम होता हं । सुधन्वा खौलते हुए तेलके कडाहमें भटकता था झौर मुभ जैसे दूर रहकर देखनेवाले




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