भीमसेन | Bhimsen
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिडिवा राक्षसी १५.
तो थकान होती है और न भूख-प्यास ही छाती-दै। तुभे तो
इछ भी नहीं छता ° छन्ती ने जवाब दिया ।
“माँ, मेरी बात तो सुन ।”
“हे, सुनती हूँ बोल |
“थकान-थकान में प्क्रं है। जो वात मत को अच्छी न
छाती हो फिर भी किसी कारण करनी ही पढ़े, उसकी थकान
' एक तरह की होती है। जो बात मन को अच्छी. छगती हो,
इतना ही नहीं वल्कि उसे करने से मन की एक तरह की भूख तृप्त
होती हो, तो उसको करने में थकावट मालूम पड़ने पर भी मन उसे
थकान के रूप मे स्वीकार नदीं करता । उलटे जब-तब उसीको
करने की इच्छा हुआ करती दै भीमसेन वोरा ।
“भीमसेन ! तू ऐसी वुदधिमानों ' कीसी वाते करना कसे
सीख गया यह शाख्च तुमे किसने सिखाया १” युधिष्ठिर बोले ।
“पिछले पन्द्रह दिनों से पेरों को. शान्ति न मिलने से शास्च
अपनेआप पेदा नहीं हो जाता ९” इन्ती बोली ।
“भाईसाहब | शात्र-वास्र तो में जानता नहीं, लेकिन सच
कहता हूँ; जंगलों में भटकना, दस-पाँच आदमियों को पीठ पर
लादकर भागना, बढ़े-बढ़े वृक्षों को जड़-मूछ से उखाड़ फंकना,
खड़डे और टेकरियों को लाँघ जाना, जंगल में काली मँधेरी रात
साँय-साँय करती हो ओर शेर गर्जता हो तो भी उसमें से निडर
होकर चला आना, इन सवम छ ओर ही आनन्द आता है।
पसे प्रसंगो मे यमे जीबन का मज़ा आता है । माँ | सच जानो,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...