दिव्य दोहावली | Divya Dohawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आय मा সস শিলই পাট শি টি ০ ^ ~ - ~ - ~~ - ~ +~ - ~ €~ €~ -- [ १ 1] करितनौ चरसौ जलद जलल, भरौ सरित सर करूप | ये नैना भरहेँ नहीं, बिनु देखे तदुरूप ॥१३०॥ है घनश्याम | ज़ब तक तुम्हारं ही समान रूप वाले घनश्याम के ये नेत्र न देख लेंगे तब तक भरंगे नहीं, प्रसन्न नहीं हागे । इत्यादि श्रौर कितने ही सुन्दर भावं पूण दोहे नेत्रों के सम्बन्ध के हैँ किन्तु उन सब की व्याख्या करना यहाँ अनावश्यक ही सा है। निम्त- लिखित दोहे मुझे कुछ अधिक पसन्द आये ४-- इन विशाल अं खियान को, जल्लधहु कहें न तोष । काहन बधि मथ ये, काहि न लेञे शाष॥ दोऊ अंखियां हिय लगी, लिपट रहीं बेपीर। ङंगरी भई बजाज की, रही चीर सों चौर ॥ मन हू दिये न मन मिल्लत, है मन इतो अमेल । নিলা লীন কী पे, जिनके लोचन लोल ॥ श्रत सेवत ह नहि भये, नेक निरामिष नेन। पियत सकत जिहि हिय ल्गत, रक्त रहत दिनरेन॥ बातन बनि पिय हितु हिये, सेनन संद हि देत । देखत पी चित ले चले, हू ठग चोर ठकेत ॥ नयनन की नीरज कदत, सांचहु हात सकाच | पिय बिच হাত ল सम्पुटित, रहन खुले हू पोच ॥ नयन-नोर-निथ की कछू, उत्तटी चाल लखाइ। मुख-शशि देखे घटत जल, बिनु देखे उमड़ाइ ॥ । भभ, जद, १७६, २७८, &६, १८५५,& संखार में प्रेम की बड़ी ही महत्ता है। काई “प्रेम पंथ निराला ऊथो” कहते हैं तो कोई कहते है कि ০ जो -++ से ज्यें7४ “ कि+० डे“ उप औ-++ उसे उसे आई“ थी. ज्/। मत अर, फट >फ1+फ-* ০ १० +- 4८५7. हैं---कह-+०--+हैं?++फ्रेए *फके 7 उसे 7“ फडे“ পু म म - म --- म - नदन मे--- +न 2




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