दिव्य दोहावली | Divya Dohawali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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[ १ 1]
करितनौ चरसौ जलद जलल, भरौ सरित सर करूप |
ये नैना भरहेँ नहीं, बिनु देखे तदुरूप ॥१३०॥
है घनश्याम | ज़ब तक तुम्हारं ही समान रूप वाले
घनश्याम के ये नेत्र न देख लेंगे तब तक भरंगे नहीं,
प्रसन्न नहीं हागे । इत्यादि श्रौर कितने ही सुन्दर भावं
पूण दोहे नेत्रों के सम्बन्ध के हैँ किन्तु उन सब की
व्याख्या करना यहाँ अनावश्यक ही सा है। निम्त-
लिखित दोहे मुझे कुछ अधिक पसन्द आये ४--
इन विशाल अं खियान को, जल्लधहु कहें न तोष ।
काहन बधि मथ ये, काहि न लेञे शाष॥
दोऊ अंखियां हिय लगी, लिपट रहीं बेपीर।
ङंगरी भई बजाज की, रही चीर सों चौर ॥
मन हू दिये न मन मिल्लत, है मन इतो अमेल ।
নিলা লীন কী पे, जिनके लोचन लोल ॥
श्रत सेवत ह नहि भये, नेक निरामिष नेन।
पियत सकत जिहि हिय ल्गत, रक्त रहत दिनरेन॥
बातन बनि पिय हितु हिये, सेनन संद हि देत ।
देखत पी चित ले चले, हू ठग चोर ठकेत ॥
नयनन की नीरज कदत, सांचहु हात सकाच |
पिय बिच হাত ল सम्पुटित, रहन खुले हू पोच ॥
नयन-नोर-निथ की कछू, उत्तटी चाल लखाइ।
मुख-शशि देखे घटत जल, बिनु देखे उमड़ाइ ॥
। भभ, जद, १७६, २७८, &६, १८५५,&
संखार में प्रेम की बड़ी ही महत्ता है। काई “प्रेम
पंथ निराला ऊथो” कहते हैं तो कोई कहते है कि
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