श्रम - अनुशासन एवं औद्योगिक परिवाद | Shram - Anushasan Avam Aodyogik Parivad

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Book Image : श्रम - अनुशासन एवं औद्योगिक परिवाद  - Shram - Anushasan Avam Aodyogik Parivad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| स्यायो प्रादेश वनाना- काम या छेदा वी शर्ते “स्थायी धादेश” (ইতি पां) मे तिस्तिटोतौरहै 1 एम्ब लपि राज्य सरकार ने * धादश ( मॉडल ) स्थायों फ्रेश” बताय हैं, जिनके झ घार पर मालिक খাই प्रादेश का प्राहूप (ड्राफ्ट) बनावर प्रमाए।कक्‍न গণিক্াহী (06110170006) বীজ নান के भीतर भीतर पेश बरेगा । जिस वह नियमानुसार एतहाज प्रादि सुनकर प्रमाणित वरेगा। इस प्रमाणित स्थायी भ्रादेश वी एक प्रति (हापी) मालिक घपने उद्योग में सव दो सूचनार्थ छटकायेगा । ऐसा नहीं करने बाले मालिक पर घारा १३ के प्रघीन २०० रु प्रतिदिन तक जुर्माता किया जा सकता है। ३ स्थायी प्रादेश मे परिवर्तत या सशोघन-- एक वार स्थायी झांदेश बना देने के छ माह तक उनमे कोई परिवर्तन नहीं হীনা। बाद में मजदूर व मालिक दोनों के सम्रमौते से इनमें सशोघत्र हो सकंगे, जिन्हे फिर पे प्रमाणाविन घषिकारों “पि नियमानुसार प्रमाणित करवाना होगा ॥ ३. स्थायी प्ादेशों के लागू होने या प्र करते के बारे में सम्बंधित श्रम स्थायालय का निणय मान्य होगा । ४ स्थायी धादेश में जिम शर्तों कौ सम्मिलित किया जावेगा, वे प्रनुमूची मे एस प्रकार बताये गये हैं घोर नियमों की प्रनुसूची में नभूने के रूप मे दिये गये हैं-- (१) कामगारकावर्भोकरण। (२) काम के घष्टे, समय, छट्टी, वेहन का दिन, सजदूरी को दरें-इतकों कामगार को सूचना देता । (३) पारो का कायक्रम 1 (४) द्वाजिरों घोर देर से घाता । (২) ভূত 0৩৪১০) घोर भ्रवकाश ([1011039) के लिये शर्में, पर्जी देने का ठरीबा, मन्‍्दूरों देने वाले घ्रचिक्रारी 1 (६) उद्योग में भाने के फाटक, तलाशी प्रादि को शर्तें ॥ (७) उद्योग या उपके भागों को নাহ करना या वापस सोलता-पस्वाई रूप ते काम बन्द केरना--इस्ते उत्पस्त मालिक व सजदूर के प्रधिकार धौर मांगें 1 (८) नौकरी समाप्त करना प्रोर उसके तिये पूवा (नोटिस) देना । (९) दुराचश्ण दे कारण मोमत्तिषीया वर्ास्तयों दुराबरण माने जने वाले बाय या भूले + (१०) भानि या उसके प्रतिनिधियों द्वारा प्रन्यायपूर्णा गराये तपा ध्नुद्दित स्यवद्धार हे दिदद्ध कामगार को मदद के साघत | (११) भस्प बातें, जो बलित की जावे । डैद्रीय तियमों को धनुसूची (१) में जो सेवा था काम को शरों दो गई है, उनमें राज्यों के नियमों




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