मनोनुकृति | Manonukriti

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Manonukriti by केशरी नाथ त्रिपाठी - Keshari Nath Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैसे मनुप्य की आग होती ह दैसे ही कविता की। यह कभी एक भद्ध में प्रकट होती है. कभी यगंक्ति-पक्ति में। मेरी रचनाओं में कहीं आमा की ध्वनि गुजित हो तो मैं उसे सार्थक भा्ुँगा | सुधा-- जैसा नाम वैसा गुण । यह मेरी पत्लो का कान है। पंक्तियों की मराहना का आदि वही हैं। अभिव्यक्ति की अपूर्णना, গালা की उपयुक्तता, रार्थकता या निर्थकता और कही पर्मार्जन की आवश्यकता - यह सब इगित करने का कार्य भी उन्होंने किया। कुछ रचनाओं की गेयता का स्वरूप दिखाकर मेरी प्रेरणा भी चनी ओग आलोचक भी । यह कोई ऋण नही. सहकार्य था | कनं भार प्रकर करूँ, समझ में वहीं आता। हिन्दी साहित्य के अनेक मर्मक्ष स्वेहियों एवं वरण्य रचनाकार ने इन रचनाओं के प्रति सजग आत्ीयता प्रदर्शित की। जीवन के ऊहापोह मे इस प्रेरणा न भी अवसम निकालकर कविताओं को मनोनुकृति' के रूप में प्रस्तुत करने का पथ दिखलाया। पै उन समी साहित्यिक मनीषियो का हृदय से कृतन्ञ हूँ। कुछ ल्लोगो के नाम अवश्य लेना चाहूँगा, जिनमें सर्वप्रथम विह्ान्‌ कवि 'भारत-भारती' से अलंकृत हॉ० जगदीश गुत्त, पद्मश्री गोपालदास “नीरज', पद्मश्री रानी रामकुमार भार्गव, श्री प्षाम ठाकुर, श्री गजेन्द्र नाथ चतुर्वेदी, डाँ० लक्ष्मी शंकर मिश्र 'निशंक', श्री गंगारल पाण्डेय, डॉ० चन्द्रिका प्रसाद शर्मा, डॉ० दाऊ जी गुप्त, डॉ० सुनीता जैन, हुल्लड़' मुरादाबादी, चन्रशेखर मिश्र, श्री प्रभात शास्त्री, श्री श्रीधर शास्त्री, डॉ० सन्त कुमार, पं> राजाराम शुक्ल पंं० रामलखन शुक्ल, डॉ० सुषमा सिंह, देवेश जी तथा श्रीमती अल्पना तलवार की मदाशयता के प्रति अपनी कृतज्ञता अवश्य ज्ञापित करना चाहूगा। षै श्री नरैश्च कात्यायन एवं श्रीमती मंगेश लदा श्रीवास्तव लनः श्री' ने इस कृति की प्रकाशन अक्रिया में अपना सहयोग दिया, उन्हें मेरा सेहिल आशीप | पुस्तक की भूमिका लिखकर प्रख्यात साहित्यकार वं चित्रकार `भारत्त भारती' डॉ० जगदीश गुप्त एवं विद्वान साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ० जगदीश द्विवेदी कार्यकारी सम्पादक, अमृत प्रभात, ने अपने आत्लीय अनुराग का योगदान किया है। शांति प्रकाशन,




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