परमाध्यात्म तरंगिणी | Parmadhyatm Tarangini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) दुख के मौलिक कारण राग-द्वेष शरीर मे अर्थात्‌ 'पर' में अपनापना मानने से पैदा होते हैं और निज आत्मा को निजरूप अनुभव करने से मिटते है। यह नियम गणित के “दो जमा दो बराबर चार” के नियम की तरह सुस्पष्ट है, इसमे सशय अथवा रहस्य की कोई गुजाइश ही नही है । अब तक की चर्चा का साराश निकलता है कि दो बाते जाननी जरूरी है -एक तो यह कि दुख राग-हेष की वजह से है, पर-पदार्थो की वजह से नहीं । और दूसरी यह कि अपने चेतन्य को पहचाने बिना शरीर मे अपनापन नही सिट सकता, शरीर मे अपनापन मिटे बिना राग-हेष नहीं समिट सकता और राग- देष मिटे নিলা यह जीव कमी युखी नही हो सकता । इस जीव को एक ही रोग “राग भौर द्वेष” ओर सभी जीवो के लिए-चाहे वे किसी को भी मानने वाले क्यो न हो--दवा भी एक ही है सरीर और कर्मफल से भिन्न अपने को चैतन्य रूप अनुभव करना जिससे राग-ह्ेष का अभाव हो। सही दवा को न पाकर और अन्यथा क्रिया-कलापो को दवा मानकर इस जीव ने अपना रोग बढाया ही है। राग-हेष का अभाव ही एक मात्र धर्म है। राग-द्वेष का अभाव कंसे हो ? क्योकि लौकिक मे देखा जाता है कि जिन लोगो को अथवा जिन चीजो को हम अपनी नही देखते हैं--जानते हैं उनके हानि-लाभ और मरण जीवन को जानने पर भी हमे कोई सुख-दु ख नही होता । क्योकि हमे अपनी चीज की पहचान है अत वे पर रूप दिखाई देती है अपनी नही । इसी प्रकार से अगर शरीरादि से भिन्न निज आत्मा का ज्ञान उसी ढग का हो जाता तो शरीरादि भी पररूप दिखाई देने लगते तब उनमे भी सुख-दुख राग-द्वेष नही होता । जब शरीरादि ही पररूप दिखाई देते हैं तव शरीर से सम्बन्धित अन्य स्त्री पुत्रादि अथवा धनादिक লী আনল आपही पर हो जाते है तब उनके सयोग-वियोग में ह्षं-विषाद न होता यह बात प्रत्यक्ष है। राग-द्वेष का अभाव कंसे हो ? उनके अभाव के हेतु निज चेतन्य को किस प्रकार पहचाना जाये ? अत अब इस बारे मे विस्तार से विचार करना है। आत्म-विज्ञान : यदि नकारात्मक ढंग से कहे तो राग-द्वेंष का अभाव और सकारात्मक ढग से कहे तो परम सुख की उपलब्धि, यही साक्षात्‌ धर्म है। साधन की दृष्टि से राग-ढेष के अभाव के उपाय रूप विज्ञान को भी धर्म कहा जाता है। भगवान सहावीर ने निजमे राग-ह्ेष का समूल नाश करके परम सुख को प्राप्त किया और इस आत्म-विज्ञान को ससार के समस्त जीवो के हितार्थ बतलाया । ससारी जीव अशद्ध है और राग-द्वेष ही उसकी अशुद्धता है । वह कब से अशुद्ध है ? यदि पहले शुद्ध था तो अशुद्ध क्यो और कैसे हुआ ? इन प्रश्तो का समाधान है कि जेसे खान से निकाला गया सोना कीट-कालिमा से मिला हुआ हो निकलता है, पहने कभी शुद्ध रहा हो और फिर अशुद्ध हो गया हो, ऐसा नही है, वल्कि ऐसा है कि वह सदा से अशुद्ध था,




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