मेरी जीवन यात्रा | Meri Jeewan Yatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुंट म्व-पाल
साख थी और वह जबतक रहे तबतक धन-घान्य से भरे-पूरे रहे।
उनका यह स्वभाव-सा हो गया था कि थोडा-बहुत मुनाफा मिलता तभी वह
माल बेच देते, ज्यादा लोभ में न पडते ।
उसका श्रफीम का धन्धा था । खैतो से श्रफीम के रस के घड़े-के-घड़े
भरकर आते । कुछ दिनो रखे रहने के वाद उस रस को बडी-बडी परातो
में मथा जाता और फिर लड़इ जैसे गोले बनाए जाते । इसे अफीम की
गोटियाँ कहते थे । कोठो मे लाखो की अफीम भरी रहती थी ।
कहावत है कि लोभ गला कठता है। पिताजी के बाद घर के लोगो
को प्राय धाटा ही उठाना पडा, क्योकि वे उनकी नीति के भ्रनुसार नही
चले । थोडे नफं मे सन्तोप माननेवाले को जोखम कम उठानी पडती है ओर
वह् लाभमे ही रहता है 1 उनके जीवन मे कुटुम्ब की स्थिति सभी दष्ट
से श्रच्छी रही ।
विवाह के बाद जब में ससुराल जाने लगी तब पिताजी ने कहा था-
“बेटी, तू पराये घर जा रही है। वहाँ अच्छी तरह रहना। ज्यादा न
बोलना । कोई चार बार कहे तो एक बार बोलता ।”
जैसा उनका जीवन भव्य रहा वैसी हो उनकी मृत्यु भी । जिस दिन
उनका स्वगवासं हुभ्रा, उस दिन सुबह वह् मदिर गये, ग्यारह वजे तक
चिद्यं लिखते रहे । फिर नहाकर धोती पहन रहे थे कि उनको चक्कर
भ्रा गया। कमरे से आये और लेट गए। लोग इकट्ठे हो गए । डाक्टरो को
बुलाया गया । इन्दोर से भी डाक्टर बुलाये गए, पर कु भी फायदा न
हुआ । शाम को सात वजे उनका देहान्त हुआ । कहते है, उनका प्राण
ब्रह्माण्ड में से निकला । सिर ऊपर से फट गया था और खून गिरा। ऐसी
मृत्यु किसी योगी या महापुरुष की होती हैं, ऐसा कहा जाता है ।
उस समय मेरी श्रायु दस-ग्यारह साल की थी
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DrRaju
at 2019-09-29 09:38:23"जानकीदेवी : मेरी जीवन यात्रा"